दहशत

Started by शिवाजी सांगळे, April 16, 2021, 06:27:46 AM

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शिवाजी सांगळे

दहशत

खामोशियाँ भरा अजीब मंजर
क्यूं हवा ये जहरीली हुई है

सन्नाटे के साथ साथ शहरों में
कैसी दहशत फैली हुई है

मुरझाने लगें है बागीचे फूलों के
लौ शमशानों में जली हुई है

सोचा था वक्त बितेगा जीते जी
मौत से चादरें मैली हुई है

लोग बेहिसाब मरने लगे, शायद
उम्र, मौत से मिली हुई है

लगती थी आसान बडी ज़िंदगी
अब तो यह पहेली हुई है

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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