बिछडनेका गम-बिरह- कविता - "तू जहा भी रहे खुश रहे"

Started by Atul Kaviraje, July 11, 2021, 01:52:14 AM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     मिलना - बिछडना तो प्रकृती का नियम है. वो प्यार को भी लागू होता है. प्रस्तुत कविता की नायिका यह बिरह गीत गा राही है. बिरह तराना छेड रही है. उसका प्रेमी तो उसे छोडकर किसी कारणवश जा तो चुका है, पर उसकी यादे इस प्रेमिका के पास हमेशा के लिये कैद है. अब उसे इसी यादों के सहारे ही जीना है. पता नही फिर कब मुलाकात होगी. अब उसे अपने प्रेमी का इंतजार भी नही रहा.

     अंत में वो कह रही है, की तू जहाँ भी रहे खुश रहे. इसीमे मेरी भी ख़ुशी है. यह गमगीन भरी, उदासीन कविता, मुझे लिखते हुए अंतर्मुख कर गयी. तो सुनीये दोस्तो, यह  दो प्रेमी जीवो के बिछडनेकी उदास, बिरह कविता. कविता का शीर्षक है-"तू जहा भी रहे खुश रहे"

                   बिछडनेका गम-बिरह-कविता
                     "तू जहा भी रहे खुश रहे"
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तू नही तो क्या हुवा
तेरी यादे तो साथ है
तेरे साथ निभाये हुये,
वो वादे तो साथ है.

जिंदगी तो युही गुजर जायेगी
किसी का इंतजार नही करती वो
तेरी इंतजार मे मेरी आंखो मे,
कबसे तेरे सपने बसे हुये है.

आस लेकर बैठी है ये पगली
तेरे मिलन कि एक तमन्ना है
सुकून मिलता जानकर ये,
के तेरा दिल तो मेरे पास है.

यादो के सहारे अब जीना
जिने कि यही राह है
तू जहा भी रहे खुश रहे,
मेरे दिल से निकली ये दुवा है.


-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.07.2021-रविवार.