सावन कविता - "मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के"

Started by Atul Kaviraje, August 12, 2021, 11:32:50 PM

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Atul Kaviraje

मित्रो,

     हिंदी कविता के एक अनामिक कवी की कविता आपको सुनाता हू.  यह कविता सावन (वर्षा ऋतू ) पर आधारित है. हिंदी कविता का मेरा यह (पुष्प-4)आपको सप्रमाण सादर करता हू. इस कविता के बोल है - "मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के"


                            हिंदी कविता-(पुष्प-4)
                                 सावन कविता
                    "मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के"
                                कवी -अनामिक
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मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के-----
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मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।

आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली,
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
'बरस बाद सुधि लीन्ही'
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
'क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की'
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके,
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।


                   कवी-अनामिक
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                 (साभार एवं सौजन्य-हिंदीपोएम.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.08.2021-गुरुवार.