II शिक्षक दिन II-शायरी एवं कविता - कविता क्रमांक-5

Started by Atul Kaviraje, September 05, 2021, 01:13:48 PM

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Atul Kaviraje

                                   II शिक्षक दिन II
                                         शायरी
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मित्रो,

     आज रविवार, दिनांक-०५.०९.२०२१, आज के दिन का महत्त्व यह है, कि आज, राष्ट्रीय शिक्षक दिन है. इस उपलक्ष्य में  सुनेंगे, माहितीपूर्ण लेख, इस दिन का महत्त्व, भाषण, निबंध, कोट्स , शायरी, कविता, शुभ संदेश, एवं अन्य जानकारी.

                          शिक्षक दिवस पर शायरी ----


जीवन का मार्ग कठिन हैं
सत्य का विचार कठिन हैं
पर जो हर हाल में सत्य सिखाये
वही एक सफल शिक्षक कहलाये
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चंद शब्दों में नहीं होती बयाँ
ईश्वर के तुल्य हैं जिनकी काया
ऐसे गुरु वर को शत शत नमन
उनके चरणों में जीवन अर्पण
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शिक्षक हैं एक दीपक की छवि
जो जलकर दे दूसरों को रवि
ना रखता वो कोई ख्वाइश बड़ी
बस शिष्य की सफलता ही हैं खुशियों की लड़ी
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कड़ी धूप में जो दे वृक्ष सी छाया
ऐसी हैं इनके ज्ञान की माया
नहीं होता कोई रक्त सम्बन्ध
फिर भी हैं जीवन का अनमोल बंधन
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भीड़ में हैं एक गुरु ही अपना
दिखाये जो जीवन का सपना
पग पग पर देते वो दिशा निर्देश
गुरु से ही सजे जीवन परिवेश
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ना तारीफ के शब्दों की हैं उसको चाहत
ना महंगे उपहारों से होती उसकी इबादत
उसे मिलती हैं तब ही आत्मीय शांति
जब फैलती हैं विश्व में शिष्य की कान्ति
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सफल जीवन सजता हैं सपनो से
जो मिलता हैं किसी गुरु की दस्तक से
जीवन सूर्य सा प्रकाशित हो उठता हैं
जब साथ एक सच्चे गुरु का मिलता हैं
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बिन गुरु नहीं होता जीवन साकार
सिर पर होता जब गुरु का हाथ
तभी बनाता जीवन का सही आकार
गुरु ही हैं सफल जीवन का आधार
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हर काम आसान हो जाता हैं
जब सच्चे शिक्षक का सानिध्य मिलता हैं
फिर कितने ही आये जीवन में उतार चढ़ाव
शिक्षक के चरणों में ही मिलता हैं ठहराव
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जीवन जितना सजता हैं माता-पिता के प्यार से
उतना ही महकता हैं गुरु के आशीर्वाद से
समाज कल्याण में जितने माता पिता होते हैं खास
उतने ही गुरु के कारण देश की होती हैं साख
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                  (संकलक साभार आणि सौजन्य-भरत वटाणे)

                  (संदर्भ-बीएमसी  स्कूल्स .ब्लॉगस्पॉट .कॉम)
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                             शिक्षक दिन हिंदी कविता
                                      क्रमांक-5
                       "सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ "
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------सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ-----


सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ,
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ.

चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी,
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ.

समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के,
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ.

बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा,
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ.


                        (साभार एवं सौजन्य - हिंदीजानकारी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.09.2021-रविवार.