II बैल पोला त्यौहार II - लेख क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, September 06, 2021, 11:46:41 AM

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Atul Kaviraje

                              II बैल पोला त्यौहार II
                                   लेख क्रमांक-2
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मित्रो,

     आज का यह दिन याने, सोमवार, दिनांक-०६.०९.२०२१,दो  विशेष पर्व लेकर आया है. आज पिठोरी  अमावस और बैल पोळा है. आईए जानते है  इन  दो महत्त्वपूर्ण पर्वो कि विशेषताये, महत्त्व , पूजा विधी, कथा, व्रत , एवं अन्य  महत्त्वपूर्ण जानकारी.


                 महाराष्ट्र में पोला पर्व मनाने का तरीका:-----

     पोला के पहले दिन किसान अपनी बैलों के गले, एवं मुहं से रस्सी निकाल देते है.
इसके बाद उन्हें हल्दी, बेसन का लेप लगाते है, तेल से उनकी मालिश की जाती है.
इसके बाद उन्हें गर्म पानी से अच्छे से नहलाया जाता है. अगर पास में नदी, तालाब होता है तो उन्हें वहां ले जाकर नहलाया जाता है.इसके बाद उन्हें बाजरा से बनी खिचड़ी खिलाई जाती है.इसके बाद बैल को अच्छे सजाया जाता है, उनकी सींग को कलर किया जाता है. उन्हें रंगबिरंगे कपड़े पहनाये जाते है, तरह तरह के जेवर, फूलों की माला उनको पहनाते है. शाल उढ़ाते है.इन सब के साथ साथ घर परिवार के सभी लोग नाच, गाना करते रहते है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य ये है कि बैलों के सींग में बंधी पुरानी रस्सी को बदलकर, नए तरीके से बांधा जाता है.

    गाँव के सभी लोग एक जगह इक्कठे होते है, और अपने अपने पशुओं को सजाकर लाते है. इस दिन सबको अपनी बैलों को दिखने का मौका मिलता है.
फिर इन सबकी पूजा करके, पुरे गाँव में ढोल नगाड़े के साथ इनका जुलुस निकाला जाता है.

    इस दिन घर में विशेष तरह के पकवान बनते है, इस दिन पूरम पोली, गुझिया, वेजीटेबल करी एवं पांच तरह की सब्जी मिलाकर मिक्स सब्जी बनाई जाती है.
कई किसान इस दिन से अपनी अगली खेती की शुरुवात करते है.
कई जगह इस दिन मेले भी लगाये जाते है, यहाँ तरह तरह की प्रतियोगितायें आयोजित होती है, जैसे वॉलीबॉल, रेसलिंग, कबड्डी, खो-खो आदि.

     मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में पोला त्यौहार मनाने का तरीका:-----

     मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ बहुत सी आदिवासी जाति एवं जनजाति रहती है. यहाँ के गाँव में पोला के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है. यहाँ सही के बैल की जगह लकड़ी एवं लोहे के बैल की पूजा की जाती है, बैल के अलावा यहाँ लकड़ी, पीतल के घोड़े की भी पूजा की जाती है.

     इस दिन घोड़े, बैल के साथ साथ चक्की (हाथ से चलाने वाली चक्की) की भी पूजा की जाती है. पहले के ज़माने में घोड़े बैल, जीवनी को चलाने के लिए मुख्य होते थे, एवं चक्की के द्वारा ही घर पर गेहूं पीसा जाता था.तरह तरह के पकवान इनको चढ़ाये जाते है, सेव, गुझिया, मीठे खुरमे आदि बनांये जाते है.घोड़े के उपर थैली रखकर उसमें ये पकवान रखे जाते है.फिर अगले दिन सुबह से ये घोड़े, बैल को लेकर बच्चे मोहल्ले पड़ोस में घर – घर जाते है, और सबसे उपहार के तौर पर पैसे लेते है.

     इसके अलावा पोला के दिन मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में गेड़ी का जुलुस निकाला जाता है. गेड़ी, बांस से बनाया जाता है, जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट उपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है. फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है. गेड़ी कई साइज़ की बनती है, जिसमें बच्चे, बड़े सभी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है. ये एक तरह का खेल है, जो मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का पारंपरिक खेल है, भारत के अन्य क्षेत्रों में तो इसे जानते भी नहीं होंगें.

     पोला का त्यौहार हर इंसान को जानवरों का सम्मान करना सिखाता है. जैसे जैसे ये त्यौहार आने लगता है, सभी लोग मेहनती किसों को हैप्पी पोला कहकर मुबारकबाद देने लगते है.

                            (साभार एवं सौजन्य-दीपावली .को .इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.09.2021-सोमवार.