II बैल पोला त्यौहार II-कविता क्रमांक-2-"हम बैल थे "

Started by Atul Kaviraje, September 06, 2021, 02:48:31 PM

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Atul Kaviraje

                               II बैल पोला त्यौहार II
                                  कविता क्रमांक-2
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मित्रो,

     आज का यह दिन याने, सोमवार, दिनांक-०६.०९.२०२१,दो  विशेष पर्व लेकर आया है. आज पिठोरी  अमावस और बैल पोळा है. आईए जानते है  इन  दो महत्त्वपूर्ण पर्वो कि विशेषताये, महत्त्व , पूजा विधी, कथा, व्रत ,  कविता एवं अन्य  महत्त्वपूर्ण जानकारी.


                                   कविता क्रमांक-2
                                    "हम  बैल  थे "
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हमने  हल  जोते
खेतो  के  सफाई  में  हाथ  बटाया   
कुओ  से  पानी  निकाला
हमने  उख  पेरी
घानी  से  तैल  निकाला
हमारी  पीठ  ने  तुम्हारे  कुल्हे  ढोये
बगैर  हमारे  सारे  चुल्हे  रोये
हमारे  दुःख  से  धरती  हरी  थी
हमने  हस्ती  गिरवी  धरी  थी
हम  बस  गोबर  मैल  लगे
हा ,हम  नही  थे , पक्की  छत  की  मानिंद
पर  हम  निर्धन  की  खपरेल  थे
हम  बैल  थे ,
केवल  बैल  थे   I

हम  भादो  की  काली  चौदस  को  जन्मे
और  केवल  अमावस  तक  जीवित  रहे
बस  एक  दिन  जिये
पोळा  पिठोरा  में  एक  दिन  सजे
बस  एक  दिन   तुम्हारी  खीर  खायी
बस  एक  दिन  पुरणपोळी  चखी   
तुमने   हमारे  सिंग  सवारे   
पर  नकेल  धसा   कर  यू  ही  रखी
कही  अन्नमाता  ने  गर्भधारा
कही   धान  में  उतारी  दुग्ध  की  धारा
बस  साधा  तुम्हारा  काज
बस  माना  तुम्हारा  पर्व
हम  जोडी   में  दौडे
दौडकर  जिताया  तुम्हे
मगर  हम  हारे
की   हम  नही  थे  झुरी  के  हिरा  मोती
हम  बिगडैल  थे
हम  बैल  थे ,
केवल  बैल  थे   I

हम  वृषभ  थे
हम  ऋषभ  थे
हम  बारात  में  तुम्हारे  रथ  बने
कही  खिलौनो  की  तरह  बिके
कभी  मिट्टी  के  हुए
कभी  पत्थर  के  हुए
सडक  पे  कट  कर  मरे
हम  आवारा  कहलाये   
पीछे  पडे  डनडो  से  डरे   
हमारे  खेत  छुटे
हमारे  भाग  फुटे
हम  ताकतवर  थे
न  की  गुसैल  थे
हम  बैल  थे ,
केवल  बैल  थे   I

हमने  साथी  खोये
हम  कितने  तनहा  रोये
हम  गाढी  अंधेरी  रात  में
तेज  धूप  बरसात  में
बर्फानी  शीत  में  तुम्हारे  काम  आये
हमने  लकडियों  के  गठ्ठर  खिचे
हम  चलते  रहे  आँखे  मिंचे
हमने  छिंके  देखे
हमने  खुराई  झेली
हमने  जलते  जंगल  देखे
हमने  उगते  मकताल  देखे
हम  भूखे  रहे , खेतो  को  छाना
सब  ने  हमी  लावारीस  माना
हम  शिव  के  नंदी  नही  थे
हम  शैल  थे
हम  बैल  थे ,
केवल  बैल  थे   I

                       कवी-राहुल  बोयल
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                             (साभार एवं सौजन्य-पोशंपा .ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.09.2021-सोमवार.