II गणपती बाप्पा मोरया II - अनंत चतुर्दशी - लेख क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, September 19, 2021, 04:44:14 PM

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Atul Kaviraje

                                  II गणपती बाप्पा मोरया II 
                                       अनंत चतुर्दशी
                                       लेख क्रमांक-3
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मित्रो,

     आज दिनांक-१९.०९.२०२१-रविवार का दिन है. आज अनंत चतुर्दशी है. आज बाप्पा को हमे अलविदा कहना है. पिछले १० दिन हमने जिस उल्लासपूर्ण, धुमधाम से मनाये, उसकी यादे मन में रख, हमे बाप्पा को भरे हुए, उदास मन से विदा करना है. लेकिन सिर्फ एक साल के लिये ही. अगले  साल फिर से बाप्पा का स्वागत हम उसी जोर शोर से करेंगे. आईए, जानते  है इस दिन का महत्त्व, एवं अन्य जानकIरीपूर्ण लेख. 

                    अनंत चतुर्दशी का क्या महत्व है?-----

     भगवान विष्णु अपने एक अन्य नाम अनंत से भी लोकप्रिय हैं जो सनातन का प्रतीक है और चतुर्दशी शब्द का अर्थ है चैदह। अनंत चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर, आमतौर पर पुरुष अपने सभी पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए और अपने बच्चों और परिवार की भलाई के लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते हैं। भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद पाने और अपनी खोई हुई समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए उपवास का लगातार 14 वर्षों तक पालन किया जाता है।

                          जैन धर्म में अनंत चतुर्दशी का महत्व-----

     अनंत चतुर्दशी जैन धर्म में महत्वपूर्ण महत्व रखती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दिगंबर जैन भादो महीने के अंतिम 10 दिनों में पर्युषण पर्व के अनुष्ठानों का पालन करते हैं। अनंत चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर पर्यूषण का अंतिम दिन मनाया जाता है। श्रद्धालु इस दिन कठोर उपवास रखते हैं। इस विशेष दिन पर, भगवान वासुपूज्य नाम के जैनों के 12वें तीर्थंकर ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। इस प्रकार, अनंत चतुर्दशी का पवित्र दिन जैन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

                        अनंत चतुर्दशी पूजा कैसे करें?----

     पूर्वी यूपी और बिहार के कुछ हिस्सों में अनंत चतुर्दशी का त्योहार विशेष रूप से भगवान विष्णु और दूध सागर (क्षीरसागर) के अनंत रूप से जुड़ा हुआ है। इस त्योहार से जुड़ी बहुत सी रस्में और रिवाज हैं।

     सबसे पहले, भक्त एक लकड़ी का तखत लेते हैं, जिस पर वे सिंदूर के साथ चैदह तिलक लगाते हैं। उसके बाद 14 पूए (मीठी गेहूं की रोटी जो कि डीप फ्राई की जाती है) और चैदह पूरियां (गेहूं की ब्रेड जो डीप फ्राई की जाती है) इन तिलकों पर रखी जाती है।
इसके बाद भक्त पंचामृत बनाते देते हैं, जो 'दूध सागर' (क्षीरसागर) का प्रतीक है।
एक पवित्र धागा जिसमें 14 गांठें होती हैं जो भगवान अनंत को ककड़ी पर बांधा जाता है और फिर पांच बार 'दूध के महासागर' में घुमाया जाता है। श्रद्धालु एक व्रत का पालन करते हैं और फिर हल्दी और कुमकुम से रंगे हुए पवित्र धागे को अपनी बांह पर (पुरूषों के दाएं हाथ और स्त्रियों के बाएं हाथ में) अनंत सूत्र के रूप में बांधते हैं। 14 दिनों की अवधि के बाद, पवित्र धागा हटा दिया जाता है।


                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी.एम पंचांग.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.09.2021-रविवार.