"ईद-ए-मिलाद-उन-नबी" - लेख क्रमांक-4

Started by Atul Kaviraje, October 19, 2021, 03:09:04 PM

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Atul Kaviraje

                                      "ईद-ए-मिलाद-उन-नबी"
                                            लेख क्रमांक-4
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मित्रो,

     आज दिनांक-१९.१०.२०२१-मंगलवार है. आज "ईद-ए-मिलाद-उन-नबी" का त्योहार मनाया जा रहा है. मराठी कविता के मेरे सभी मुस्लिम कवी-कवयित्री भाई-बहनो को इस त्योहार की बहोत  सारी शुभ-कामनाये. " ईद-ए-मिलाद " मुबारक हो. आईए, इस शुभ अवसर पर पढते है इसका महत्त्व, लेख, एवं अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी.

                     बारावफात मनाने का तरीका---

     लोग अपने विश्वास तथा आस्था के मुताबिक़ इस इस्लामिक पर्व को सेलिब्रेट करते हैं. इस दिन को त्योहार के रूप में मनाने का मूल उद्देश्य पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएं, उनकी जीवन तथा चरित्र को अपने बच्चों तथा लोगों तक पहुचाएं.

     धर्म की अच्छी बातों को ग्रहण करे. यह दान देने का महत्वपूर्ण दिन है इस दिन बच्चों, गरीबों आदि में खेरात बांटी जानी चाहिए. लोगों द्वारा बाराबफात के दिन हरें झंडे के साथ रबी की याद में शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला जाता हैं.

     देश की प्रसिद्ध दरगाहों पर लोग एकत्रित होकर एक दूसरे के अमन के लिए दुआ कर मुबारकबाद पेश की जाती है. इस तरह बारावफात का यह पर्व देश व दुनियां में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. हैं या खुलने का समय कम कर दिया जाता हैं.

        सुन्नी मुस्लिम समुदाय के द्वारा बारावफात---

     इस्लाम मजहब का सबसे बड़ा फिरका सुन्नी मुस्लिमों का हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की बहुल आबादी इसी समुदाय की हैं. सुन्नी मुस्लिमों द्वारा बारावफात के दिन को शोक पर्व के रूप में मनाया जाता हैं.

     स्वाभाविक हैं पैगम्बर मोहम्मद साहब का इंतकाल इसी दिन हुआ था इसलिए सुन्नी मत को मानने वाले इस दिन अपने खुदा के प्रति शोक प्रकट करते हैं.

     इस्लाम का सबसे अधिक कट्टर माना जाने वाला सुन्नी मत पैगम्बर की प्रत्येक शिक्षा और विचार को जीवन में कठोरता से अपनाने पर जोर देता हैं. बारावफात के अवसर पर सुन्नी लोग मस्जिद में जाकर सामूहिक शोक मनाते हैं तथा अपने ईश्वर का स्मरण करते हैं.

               शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा बारावफात---

     सुन्नी मुस्लिम की तरह शिया समुदाय के लोग भी बारावफात मनाते हैं. मगर इस दिन को शिया समुदाय हर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं. इसके पीछे मान्यता यह है कि पैगम्बर साहब ने इसी दिन हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. शिया समुदाय अली को अल्लाह का पुत्र मानकर उन्हें सर्वेसर्वा मानते हैं.

     बारावफात को इस्लाम में पवित्र दिनों में गिना जाता हैं. जो धर्मावलम्बी इस दिन मक्का मदीना अथवा अपने निकट की मस्जिद में जाकर कुरआन पढ़ते है तथा एक मुस्लिम होने का कर्तव्य निर्वहन करते है तो ईश्वर से उसकी समीपता बढ़ जाती है तथा साधक को विशेष रहमत मिलती हैं.


                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हि हिंदी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.10.2021-मंगळवार.