II शुभ दीपावली II-"बलिप्रतिप्रदा"-लेख क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, November 05, 2021, 04:39:11 PM

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Atul Kaviraje

                                         II शुभ दीपावली II
                                            "बलिप्रतिप्रदा"
                                            लेख क्रमांक-१
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मित्रो,

     आज दिनांक-०५.११.२०२१-शुक्रवार  है. दीपावली की शुरुवात हुई  है. मराठी कविताके मेरे सभी -हिंदी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको इस दीपावली कि अनेक हार्दिक शुभेच्छाये. आज का दिन "बलिप्रतिप्रदा" है. आईए जानते  है, इस दिन का महत्त्व, पूजा विधी, व्रत, एवं अन्य महत्त्वपूर्ण जानकIरी  . 

                     बलिप्रतिप्रदा पूजा विधि कथा महत्व---

     "कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है। जब भगवान श्री विष्णु ने वामनदेव का अवतार लेकर बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा। उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा। वे तीन दिन हैं- नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या और बलि प्रतिपदा।"

     बलिप्रतिप्रदा या बलिपद्यामी का त्यौहार दीवाली के दुसरे दिन, गोवर्धन के साथ मनाया जाता है. यह त्यौहार मुख्य रूप से महाराष्ट्र, उत्तरभारत और कर्नाटका में मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है, जबकि बलिप्रतिप्रदा में राक्षसों के राजा बलि की पूजा करते है. बलि प्रतिप्रदा की पूजा महाराज बलि के प्रथ्वी में आगमन की ख़ुशी में होती है. दक्षिण भारत में राजा बलि की पूजा ओणम के समय होती है, जबकि भारत के अन्य हिस्सों में ये बलि प्रतिप्रदा के रूप मनाते है. ओणम और बलि प्रतिप्रदा की पूजा एक जैसे ही होती है.

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कब मनाया जाता है बलि प्रतिप्रदा
बलि प्रतिप्रदा मनाने का तरीका, पूजा विधि
बलि प्रतिप्रदा से जुड़ी कथा
बलिप्रतिप्रदा पूजा विधि कथा महत्व
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               कब मनाया जाता है बलि प्रतिप्रदा---

     बलि प्रतिप्रदा का त्यौहार अक्टूबर, नवम्बर के समय आता है. हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक माह के पहले दिन, जो प्रतिप्रदा का भी पहला दिन होता है, उस दिन बलि प्रतिप्रदा का त्यौहार मनाते है. इसे आकाशदीप भी कहते है. पश्चिमी भारत में, यह त्यौहार  विक्रम संवत् कैलेंडर के पहले दिन  मनाया जाता है. गुजरात में यह नए साल के रूप में मनाया जाता है, साथ ही इस दिन से नए विक्रम संवंत साल की शुरुवात होती है.

     बलि प्रतिप्रदा के मनाने का तरीका हर प्रदेश का अलग होता है. आमतौर पर इस त्यौहार के दिन हिन्दू लोग एक दुसरे के घर जाते है, उपहार का आदान प्रदान करते है, कहते है ऐसा करने से राजा बलि और भगवान खुश होते है.

     इस दिन सबसे पहले जल्दी उठकर परिवार के सभी सदस्य तेल लगाकर स्नान करते है, इसे तेल स्नान कहते है. कहते है ऐसा करने से शरीर की बाहरी अशुद्धि के अलावा मन की भी सफाई होती है. इसके बाद नए कपड़े पहने जाते है, जो अनिवार्य होता है.
घर की महिलाएं, लड़कियां मिलकर घर के आँगन और मुख्य द्वार में रंगोली डालती है. इस रंगोली को चावल के आटे से बनाया जाता है.

     इसके बाद राजा बलि और उनकी पत्नी विन्ध्यावली की पूजा की जाती है. प्रतीकात्मक रूप से इस दिन मिट्टी या गोबर से सात किले रूप की आकृति बनाई जाती है. शाम के समय घरों को बहुत सारे दिये लाइट से सजाया जाता है. मंदिरों में भी विशेष आयोजन होता है, दिये से सुंदर सजावट की जाती है. इस दिन लोग राजा बलि को याद करते है, और भगवान् से प्राथना करते है कि प्रथ्वी पर जल्द से जल्द राजा बलि का राज्य आये.

     उत्तरी भारत में इस दिन एक अलग ही प्रथा चलती है. इस दिन वहां जुएँ का खेल होता है, जिसे पचिकालू कहते है. इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. कहते है इस दिन भगवान् शिव और माता पार्वती यह खेल खेलते है, जिसमें माता पार्वती जीत जाती है. इसके बाद शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिके अपनी माता पार्वती के साथ इस खेल को खेलते है, जिसमें वे माता पार्वती को हरा देते है. इसके बाद माता पार्वती के पुत्र गणेश, अपने भाई के साथ यह खेल खेलते है. गणेश जी पासों का यह खेल अपने भाई कार्तिके से जीत जाते है. समय के साथ अब बदलाव आ चूका है, अब लोग बलि प्रतिप्रदा के दिन ताश का खेल पुरे परिवार के साथ खेलते है.

     महाराष्ट्र में इस दिन को पड़वा भी कहते है, वहां पर भी राजा बलि की पूजा करते है. इस दिन पति अपनी पत्नियों को गिफ्ट्स देते है. तमिलनाडु और कर्नाटक में कृषक समुदाय इस त्यौहार को मनाते है. इस दिन वहां और लोग केदारगौरी व्रतं, गौ पूजा, गौरम्मा पूजा करते है. वहां पर इस दिन गौ माता की पूजा करने से पहले गौशाला को अच्छे से साफ किया जाता है.

     इस दिन वहां गोबर से राजा बलि की प्रतिमा बनाते है. इसके लिए सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर कोलम या रंगोली बनाई जाती है. इसके बाद उसके उपर गोबर से त्रिभुज आकर की आकृति बनाते है, जो बलि की प्रतिमा होती है. इसके बाद इसे गेंदे के फूल से सजाते है और फिर इनकी पूजा की जाती है.


                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-दीपावली.को.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.11.2021-शुक्रवार.