II श्री गुरु दत्तात्रेय II-दत्त जयंती-लेख क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2021, 01:05:26 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                       II श्री गुरु दत्तात्रेय II
                                             दत्त  जयंती 
                                           लेख क्रमांक-१
                                     ----------------------

मित्रो,

     आज दिनांक-१८.१२.२०२१-शनिवार है. आज श्री गुरु दत्तात्रेय की दत्त-जयंती है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवयित्री योको श्री  दत्त जयंती की हार्दिक शुभेच्छाये. इस पावन पर्व पर पढते है, लेख, महत्त्वपूर्ण जIनकारी, श्री दत्त पूजा विधी, जीवन परिचय, इतिहास, आरती, भजन एवं अन्य जIनकारी.

     "मार्गशीर्ष यानि अगहन माह की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इसे दत्त पूर्णिमा या दत्त जयंती कहते हैं। भगवान दत्तात्रेय को सनातन धर्म के त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। वे विष्णु अवतार और गुरु के रूप में भी पूजे जाते हैं।"

               गुरु दत्तात्रेय दत्त-जयंती, पूजा विधि एवम जीवन परिचय---

     दत्तात्रेय भगवान के जन्म दिवस को दत्ता अथवा दत्तात्रेय जयंती कहा जाता हैं. हिन्दू धर्म में तीनो देवों का सबसे उच्च स्थान होता हैं. भगवान दत्तात्रेय का रूप इन तीनो देवो के रूपों से मिलकर बना हैं. ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये तीनो देव का रूप मिलकर भगवान दत्तात्रेय के रूप में पूजा जाता हैं.भगवान दत्तात्रेय की पूजा महाराष्ट्र में की जाती हैं. इन्हें परब्रह्ममूर्ति सदगुरु,श्री गुरु देव दत्त, गुरु दत्तात्रेय एवम दत्ता भगवान भी कहा जाता हैं.

                       कब मनाई जाती हैं दत्तात्रेय जयंती 2021---

     गुरु दत्तात्रेय का जन्म दिवस मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं. यह खासतौर पर महाराष्ट्र में पूजा जाता हैं. इस वर्ष 2021 को दत्तात्रेय जयंती 18 दिसम्बर, को मनाई जाएगी.

              दत्तात्रेय भगवान का जन्म कैसे हुआ और उनका इतिहास ?---

     भगवान दत्ता सप्त ऋषि अत्री एवम माता अनुसूया के पुत्र हैं.माता अनुसूया एक पतिव्रता नारी थी इन्होने ब्रह्मा, विष्णु एवम महेश के समान बल वाले एक पुत्र के लिए कठिन तपस्या की थी.उनकी इस कठिन साधना के कारण तीनो देव इनकी प्रशंसा करते थे जिस कारण तीनो देवियों को माता अनुसूया से इर्षा होने लगी थी. तब तीनो देवियों के कहने पर त्रिदेव माता अनुसूया की परीक्षा लेने के उनके आश्रम पहुँचे. तीनों देव रूप बदल कर अनुसूया के पास पहुँचे और उनसे भोजन कराने को कहा माता ने हाँ बोल दिया, लेकिन तीनो ने कहा कि वे भोजन तब ही ग्रहण करेंगे जब वे निर्वस्त्र होकर शुद्धता से उन्हें भोजन परसेंगी. माता ने कुछ क्षण रुककर हामी भर दी. माता ने मंत्र उच्चारण कर तीनो त्रिदेवो को तीन छोटे- छोटे बालको में परिवर्तित कर दिया और तीनों को बिना वस्त्र स्तनपान कराया.

     जब ऋषि अत्री आश्रम आये तो माता अनुसूया के सारी बात विस्तार से रखी जिसे ऋषि अत्री पहले से जानते थे. ऋषि अत्री ने मंत्रो के द्वारा तीनो देवो को एक रूप में परिवर्तित कर एक बालक का रूप दे दिया जिनके तीन मुख एवम छः हाथ थे.अपने पति को इस रूप में देख तीनो देवियाँ डर जाती हैं और ऋषि अत्री एवम माता अनुसूया ने क्षमा मांग अपने पतियों को वापस देने का आग्रह करती हैं. ऋषि तीनो देवों को उनका मूर्त रूप दे देते हैं लेकिन तीनो देव अपने आशीर्वाद के द्वारा दत्तात्रेय भगवान को बनाते हैं जो तीनो देवों का रूप कहलाते हैं. इस प्रकार माता अनुसूया परीक्षा में सफल हुई और उन्हें तीनो देवो के समान के पुत्र की प्राप्ति हुई.

     यह त्रिदेव के रूप में जन्मे भगवान दत्तात्रेय हैं जिन्हें पुराणों के अनुसार वैज्ञानिक माना जाता हैं. इनके कई गुरु थे. इनका मनाना था जीवन में हर एक तत्व से सिखने को मिलता हैं. इसके कई शिष्य भी थे जिनमे परशुराम भी आते हैं. कहा जाता हैं दत्तात्रेय देव ही योग, प्राणायाम के जन्म दाता थे. इनकी सोच ने ही वायुयान की उत्पत्ति की थी.

     दत्तात्रेय देव ने ही कार्तिकेय को ज्ञान दिया था. इनके कारण ही प्रहलाद एक महान विष्णु भक्त एवम राजा बना था. इन्होने ने ही नरसिम्हा का रूप लेकर हिरण्याकश्यप का वध किया था. कई वेदों एवम पुराणों के दत्तात्रेय के जीवन का उल्लेख मिलता हैं.

                         गुरु दत्तात्रेय जयंती पूजा विधि---

     गुरु दत्तात्रेय त्रिदेव के रूप की पूजा मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन बड़ी धूमधाम से की जाती हैं. इस दिन पवित्र नदियों पर स्नान किया जाता हैं. दत्तात्रेय देव के चित्र की धूप, दीप एवम नेवैद्य चढ़ाया जाता हैं. इनके चरणों की भी पूजा की जाती हैं ऐसी मान्यता हैं कि दत्तात्रेय देव गंगा स्नान के लिए आते हैं इसलिए गंगा मैया के तट पर दत्त पादुका की पूजा की जाती हैं. यह पूजा मणिकर्णिका तट एवम बैलगाम कर्नाटका में सबसे अधिक की जाती हैं. दत्ता देव को गुरु के रूप में भी पूजा जाता हैं. दत्तात्रेय भगवान की पूजा महाराष्ट्र एवम दक्षिणी भारत में होती हैं. इनके भजन, श्लोक एवम स्त्रोत का पाठ किया जाता हैं.

--कर्णिका
----------

                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-दीपावली.को.इन)
                    ----------------------------------------


-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.12.2021-शनिवार.