II श्री गुरु दत्तात्रेय II-दत्त जयंती-लेख क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2021, 01:33:50 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                         II श्री गुरु दत्तात्रेय II
                                               दत्त  जयंती 
                                             लेख क्रमांक-2
                                       ----------------------

मित्रो,

     आज दिनांक-१८.१२.२०२१-शनिवार है. आज श्री गुरु दत्तात्रेय की दत्त-जयंती है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवयित्री योको श्री  दत्त जयंती की हार्दिक शुभेच्छाये. इस पावन पर्व पर पढते है, लेख, महत्त्वपूर्ण जIनकारी, श्री दत्त पूजा विधी, जीवन परिचय, इतिहास, आरती, भजन एवं अन्य जIनकारी.

                                   दत्त जयंती---

    भगवान दत्तात्रेय के समान प्रत्येक कृत्य से सीखने का निश्चय कर, दत्त जयंती मनाएं !

     'मार्गशीर्ष शुद्ध चतुर्दशी इस तिथि को दत्त जयंती है । छात्रो, भगवान दत्तात्रेय की उपासना करने का अर्थ उनके समान प्रत्येक मनुष्य एवं वस्तु से सदा सीखना तथा सीखने का निश्चय करना होता है ! दत्तजयंती के निमित्त हम भगवान दत्तात्रेय के विषय में शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करेंगे ।

                     १. दत्तात्रेय के नाम एवं उनका अर्थ---

१ अ. दत्त : दत्त अर्थात 'मैं आत्मा हूं',इसकी अनुभूति देनेवाला ! प्रत्येक मनुष्य में आत्मा है इसलिए प्रत्येक मनुष्य चलता,बोलता एवं हंसता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि 'हमारे अंदर भगवान का ही वास है ।' उनके बिना हम अपने अस्तिव की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं । हमें इसकी प्रचीति आनेपर ही, हम सभी से प्रेमपूर्वक आचरण कर सकेंगे ।आइए, इस दत्त जयंती को यह भाव जागृत करने का निश्चय करें ।

१ आ. अवधूत : जो अहं को धो डालता है,वह अवधूत ! पढाई करते समय आपके मनपर तनाव आता होगा न ? वास्तविकरूप में, पढाई करने के लिए बुद्धी एवं शक्ति प्रदान करनेवाले स्वयं भगवानजी ही हैं, किंतु 'मैं पढाई करता हूं', ऐसा कहने से तनाव आता है । यही हमारा अहंकार है । दत्त जयंती के निमित्त हम प्रार्थना करेंगे, 'हे भगवान दत्तात्रेय ! मेराअहंकार नष्ट करने की शक्ति एवं बुद्धी आप ही हमें प्रदान करें ।'

१ इ. दिगंबर : दिक् अर्थात दिशा ! दिशा ही जिनका 'अंबर' है, अर्थात जिनका वस्त्र है! जो स्वयं सर्वव्यापी हैं, अर्थात जो सारी दिशाओं में व्याप्त हैं, वही दिगंबर है !यदि ये देवता इतने प्रबल हैं, तो हम जैसे सामान्य जीवों को उनकी शरण में जाना अत्यावश्यक है । ऐसा करनेपर ही हमपर उनकी कृपा दृष्टी बनी रहेगी । अब हम प्रार्थना करेंगे, 'हे भगवान दत्तात्रेय ! आपकी शरण में कैसे जाते हैं ? यह आप ही हमें सिखाएं !'

                 २. भगवान दत्तात्रेय के जन्म का इतिहास---

२ अ. ब्रह्मा, विष्णु एवं महेशद्वारा महापतिव्रता माता अनसूया की परीक्षा लेने का निर्णय लेना तथा आश्रम में जाकर उनके पति की अनुपस्थिती में उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन परोसने के लिए कहना :अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया महापतिव्रता थीं ।वे धर्म के अनुसार आचरण, अर्थात किसी भी कठिन प्रसंग में भगवानजी को अपेक्षित, ऐसा ही वर्तन (आचरण) करती थीं । उनका आचरण धर्म के विरुद्ध कदापि नहीं होता था ।एक समय की बात है, ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने एक बार माता अनसूया की परीक्षा लेने का निर्णय लिया । वे अतिथि का रूप लेकर माता अनसूया के पास भोजन करने के लिए आ गए । उस समय उसके पति अत्रिऋषि तप करने के लिए बाहर गए थे । तब अनसूयाने उनसे कहा, ''मेरे पतिदेव को आने दें, तब आपको भोजन परोसती हूं ।'' परंतु तीनोंने कहा, ''उनके आनेतक हमारा रुकना संभव नहीं है । हमें तुरंत भोजन परोसा जाए । हमने ऐसा सुनाहै कि आपके घर आया अतिथि कदापि भूखा नहीं लौटता है, किंतु हमारी एक बात माननी पडेगी और वह है कि, 'शरीरपर किसी भी प्रकार का वस्त्रपरिधान किए बिना हमें भोजन परोसें ।''


– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.
-----------------------------------


                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदुजागृती.ऑर्ग)
                       ---------------------------------------


-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.12.2021-शनिवार.