II श्री गुरु दत्तात्रेय II-दत्त जयंती-लेख क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, December 18, 2021, 01:37:24 AM

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Atul Kaviraje

                                       II श्री गुरु दत्तात्रेय II
                                            दत्त  जयंती 
                                           लेख क्रमांक-3
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मित्रो,

     आज दिनांक-१८.१२.२०२१-शनिवार है. आज श्री गुरु दत्तात्रेय की दत्त-जयंती है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवयित्री योको श्री  दत्त जयंती की हार्दिक शुभेच्छाये. इस पावन पर्व पर पढते है, लेख, महत्त्वपूर्ण जIनकारी, श्री दत्त पूजा विधी, जीवन परिचय, इतिहास, आरती, भजन एवं अन्य जIनकारी.

                                   दत्त जयंती---

२ आ. माता अनसूयाद्वारा पति का स्मरण करना एवं ऐसा भाव रखना, 'तीनों देवता मेरे ही बालक हैं'; तथा उनका बालकों में रूपांतर होना :माता अनसूया अपने पति को परमेश्वर का प्रतीक मानती थीं। उन्होंने विचार किया, 'मैं मन से निर्मल हूं। मेरे मन में अनिष्ट विचार नहीं हैं ।' उन्होंने कुछ क्षण अपने पति का स्मरण किया ।तदुपरांत उन्होंने, 'ये अतिथि मेरे ही बालक हैं',ऐसा भाव रखा । इससे उन अतिथियों का बालकों में रूपांतर हो गया ।

बच्चो, यह कैसे संभव हुआ ?माता अनसूया पति को ही 'भगवान' मानकर प्रत्येक कृत्य करती थीं । उनके मन में एक क्षण के लिए भी किसी अन्य पुरुष के प्रति अनिष्ट विचार नहीं आते थे । इसलिए ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश इन देवताओं का बालकों में रूपांतर हुआ । इसके उपरांत माता अनसूयाने बालकों को गोद में लेकर दुग्धपान कराया ।

२ इ. तीनों देवताओंद्वारा प्रकट होकर वर मांगने के लिए कहना तथा अनसूयाद्वारा बालकों का पालन करने की इच्छा प्रकट करना । वर प्राप्त होनेपर ब्रह्मदेव से चंद्र,विष्णु से दत्त एवं शिव से दुर्वासा, ये तीन बालक प्राप्त होना :इसके उपरांत अत्रिऋषि, अर्थात अनसूया केपति आश्रम में आ गए । तभी उन्हें आश्रम में तीन तेजस्वी बालकों के दर्शन हुए । माताने ऋषि को पूरी घटना बताई । ऋषिने पहचान लिया कि 'ये तीन बालक कौन हैं ?'अगले क्षण ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश प्रकट हुए एवंउन्होंने मनचाहा वर मांगने के लिए कहा ।उसपर दोनों पति-पत्नीने कहा, ''इन बालकों को हमारे पास ही रहने दें'' उनके अनुसार वर प्रदान कर देवता अपने-अपने लोकों में लौट गए । ब्रह्मदेव से चंद्र, विष्णु से दत्त एवं शिव से दुर्वासा आदि तीन बालक माता अनसूया को प्राप्त हुए । उनमें से चंद्र एवं दुर्वासा तप करने के लिए निकल गए । केवल भगवान दत्तात्रेय विष्णु कार्य के लिए पृथ्वीपर रहे ।इस प्रकार भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ ।

     बच्चो, इससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान भक्तों के लिए कुछ भी करने के लिए सिद्ध रहते हैं !भक्त प्रह्लाद के लिए वे खंबे से प्रकट हुए थे तथा संत जनाबाई के लिए उन्होंने चक्की में आटा पीसा था । यदि हम उनके भक्त बन गए तथा हमारा आचरण उनकी अपेक्षा के अनुरूप हुआ, तो वे हमारे लिए कुछ भी कर सकते हैं । माता अनसूया के संदर्भ में भी यही हुआ था । हम भी आज से भगवान के प्रिय भक्त होने के लिए प्रयास करेंगे ।

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.
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                       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदुजागृती.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.12.2021-शनिवार.