II मकर-संक्रांति II-कविता क्रमांक-15

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2022, 11:52:00 PM

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Atul Kaviraje

                                      II मकर-संक्रांति II
                                       कविता क्रमांक-15
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मित्रो,

     आज दिनांक-१४.०१.२०२२-शुक्रवार है. मकर संक्रान्तिका पुण्य -पावन-त्योहार-पर्व लेकर यह शुक्रवार आया है. बाहर ठंड है. तील-गुड के लड्डू खाकर शरीर में ऊब-गर्मी-स्नेह निर्माण हो रही है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन,कवी-कवयित्रीयोको मकर संक्रांतिकी बहोत सारी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए, मकर संक्रांतीके  इस पावन पर्व पर पढते है, कुछ रचनाये, कविताये.

                       मकर संक्रांति पर कविता


आई लेकर नव विहान देखो प्यारी आई संक्रांति
और समेटे जीवन धन की कितनी ही ये निर्मल शांति।
कृषक खिल उठे, महका जीवन, तिल की, गुड़ की ख़ुशबू से
हुआ संचरित नव उत्साह, नवल सूर्य के जादू से।
चले डोर संग व्योम भेदने और सजाने ज्यों विहंग
बच्चे दौड़े लेकर हाथों-हाथों में सुंदर पतंग।
बीजेंगे अब कृषक बीज और लाएंगे फिर जीवन क्रांति
आई लेकर नव विहान देखो प्यारी आई संक्रांति।

सूर्य जाता है जब दूसरी राशि में
तब क्यों खुश हो जाता है किसान इतना
कि उड़ने लगते हैं पतंग
छाने लगती है खुशबू घी की चारों ओर
रंग फैलने लगते हैं इधर-उधर।
क्यों किसान सोचता है कि
संक्रमित होना सूर्य का शुभ होगा
उनके लिये उनके बीजे हुए बीजों के लिये।
क्या नहीं जानता किसान कि
नहीं बदलतीं ऋतुएँ किसानों के लिये
सूर्य नहीं होते संक्रमित किसानों के लिये
बल्कि उन्हें जाना होता है सिर्फ मकर राशि में
खत्म होना होता है सर्दियों का
किसानों का कोई हेतु नहीं होता इसमें
लेकिन खुश होता है किसान।
नदी अपना पानी नहीं पीती
पेड़ अपने फल नहीं खाते
किसान उपजाते हैं अन्न खुद के लिये नहीं
बल्कि इसलिये कि
अगली बार फिर आए संक्रांति
फिर हो सूर्य संक्रमित
जाए दूसरी राशि में
और उड़ें पतंग
महके तिल-मूंगफली की खुशबू चारों ओर।


           (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-xn--11ba5f4a5ecc.xn--h2brj9c)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2022-शुक्रवार.