II महाशिवरात्रि II-लेख/कविता क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, March 01, 2022, 04:34:44 PM

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Atul Kaviraje

                                          II महाशिवरात्रि II
                                        लेख/कविता क्रमांक-2
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मित्रो,

     आज दिनांक-०१.०३.२०२२ मंगलवार है. आज "महाशिवरात्री" है. "हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ने वाली शिवरात्रि महाशिवरात्रि कहा जाता है।" मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको इस पावन रात्रिकी अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए, "ओम नमः शिवाय" मंत्र-उच्चारण करें और पढे, इस पावन रात्री पर शिव तांडव स्तोत्र, शायरी एवं रचनाये.

     हर वर्ष अनेक भक्त shivratri का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं और आप शिवरात्रि पर शायरी के द्वारा अपनी भक्ति को व्यक्त कर सकते हैं।

नमन तुम्हे शिव! जिसकी महिमा अपरम्पार, अम्बर सा जो पारदर्शी है, गुण सब जिस में सृष्टि सृजन के, पालन और भंग करने के विश्व अनेकों! काश भक्ति, तीव्र भक्ति मेरे जीवन की मिल जाए उस से, उस शिव से, स्वामी सबका हो कर भी जो परे स्वयं से . जो शाश्वत स्वामी है सबका, जो सारे भ्रम का है हर्ता, जिसका सबसे उत्कृष्ट प्रेम, प्रकट है, सब नामों में बढकर नाम. "महादेव" जो सबका धाम! पावन आलिंगन में जिसके प्रेम बरसता , दर्शाता अपने अंतर में कि शक्ति ये क्षीण मात्र और परिवर्तनीय. निहित जहाँ अंधड़ अतीत के, संस्कार उद्वेलित शक्ति तीव्र ,जल जैसे उमढाता लहरें; जिसमे 'मैं' 'तू' द्वन्द उपजता बढ़ता, पलता; उसे नमन, शिव में स्थित, शांति प्रगाढ़! जहाँ बोध जनक-जन्यों का, शुचि विचार, असीमित रूप, समाहित होते सत्य में; मिट जाता बोध अन्तः-बाह्य का- प्राण वायु हो जाती शांत- पूजूँ मैं उस 'हर' को हरता जो मन की गतिविधियाँ शिव का स्वागत! हर क्लेश और तम का नाशक, अभ्रक ज्योति, श्वेत व सुन्दर श्वेत कमल के खिलने जैसा, अट्टहास से ज्ञान बिखेरे; जो निरत रहे आत्मध्यान में, दर्शन देता ह्रदय कमल में, राजहंस जो शांत झील का मेरे मन की, रक्षक मेरा, नमन है उसे! वह जो पूर्ण अमंगल हर्त्ता, निष्कलंक करता युग युग को; दक्ष सुता ने दिया जिसे कर; जो है श्वेत कमलिनी सा मधु, सुन्दर; सदा रहे तत्पर जो प्राण त्यागने परहित प्रतिपल, दृष्टि निहित दुर्बल दरिद्र पर; कंठ नील है विष धारण से; उसे है नमन!

     आदिगुरु पर्वत पर बैठे उस वैरागी से दूर रहते थे तपस्वी भी पर उन सातों ने किया सब कुछ सहन और उनसे नहीं फेर सके शिव अपने नयन उन सातों की प्रचंड तीव्रता ने तोड़ दिया उनका हठ व धृष्टता दिव्यलोक के वे सप्त-ऋषि नहीं ढूंढ रहे थे स्वर्ग की आड़ तलाश रहे थे वे हर मानव के लिए एक राह जो पहुंचा सके स्वर्ग और नर्क के पार अपनी प्रजाति के लिए न छोड़ी मेहनत में कोई कमी शिव रोक न सके कृपा अपनी शिव मुड़े दक्षिण की ओर देखने लगे मानवता की ओर न सिर्फ वे हुए दर्शन विभोर उनकी कृपा की बारिश में भीगा उनका पोर-पोर अनादि देव के कृपा प्रवाह में वो सातों उमडऩे लगे ज्ञान में बनाया एक सेतु विश्व को सख्त कैद से मुक्त करने हेतु बरस रहा है आज भी यह पावन ज्ञान हम नहीं रुकेंगे तब तक जब तक हर कीड़े तक न पहुंच जाए यह विज्ञान शिव के भक्तों को अघोरी भी बोलते हैं अगर आप सच में एक सच्चे शिव भक्त है तो आपको ये तो पता होगा की शिव तांडव की रचना रावण ने की थी इसलिए उसको शिव का महान भक्त भी कहा जाता हैं।


--AUTHOR UNKNOWN
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी जानकारी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.03.2022-मंगळवार.