II अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस II-कविता क्रमांक-9

Started by Atul Kaviraje, March 08, 2022, 02:11:16 AM

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Atul Kaviraje

                                  II अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस II
                                         कविता क्रमांक-9
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मित्रो,

     आज दिनांक-०८.०३.२०२२, मंगलवार है. यह दिन "जागतिक महिला दिवस" के नाम से भी जाना   जाता है. "प्रत्येक वर्ष 8 मार्च पुरे विश्व में महिलाओं के योगदान एवं उपलब्धियों की तरफ लोगो का ध्यान क्रेंदित करने के लिए महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और उसके स्वयं में निहित शक्तियों से उसका ही परिचय कराना होता है।" मराठी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको इस दिन कि मेरी हार्दिक शुभेच्छाये. आईए पढते है, इस दिन पर कुछ रचनाये, कविताये---

     नारी सशक्तिकरण के नारों से,गूंज उठी है वसुंधरा, संगोष्ठी, परिचर्चाएं सुन-सुन, अंतर्मन ये पूछ पड़ा। वेद, पुराण, ग्रंथ सभी, नारी की महिमा दोहराते, कोख में कन्या आ जाए, क्यूं उसकी हत्या करवाते? कूड़े, करकट के ढेरों में, कुत्तों के मुंह से नुचवाते, बेटे की आस में प्रतिवर्ष,बेटियां घरों में जनवाते । कोख जो सूनी रह जाए ,अनाथाश्रमों की फेरी लगाते, गोद में बालक ले लेते,बालिका को हैं ठुकराते। गुरुद्वारे, मंदिर, गिरजे, मस्जिद, जा-जा नित शीश नवाते, पुत्र-रत्न पाने की चाहत,ईश्वर को भी भेंट चढ़ाते। चांदी के सिक्कों के प्रलोभी, दहेज की बलि चढ़ा देते, पदोन्नति की खातिर, सीढ़ी इसे बना लेते। मनचले, वाणी के तीरों से, सीना छलनी कर देते, वहशी, दरिंदे, पशु,असुर, क्यूं हवस अपनी बुझा लेते। सरस्वती, लक्ष्मी, शीतला, नारी दुर्गा भी बन जाए, मनमोहिनी, गणगौर सी,काली का रूप भी दिखलाए। शक्ति को ना ललकारो, इसको नारी ही रहने दो, करुणा, ममता की सरिता ये,कल-कल शीतल ही बहने दो ।

     फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी अपनो की हिफासत मे सबसे अव्वल नारी दुखो को दूर कर, खूशियो को समेठे नारी फिर लोग क्यो कहते तेरा अत्सित्व क्या नारी जब अपने छोटे छोटे व्खाइशो को जीने लगती नारी दुनिया दिखाती है उसे उसकी दायरे सारी अपने धरम मे बन्धी नारी, अपने करम मे बन्धी नारी अपनो की खूशी के लिये खुद के सपने करती कुरबान नारी जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी.

     माँ तू क्यों कभी थकती नही? क्यों तू कभी अपने कर्मो से बचती नही? तेरी थकान की पीड़ा, क्यों मुझे होती है। क्यों ऐसे बलिदान की शक्ति, सिर्फ तुझ मे होती है। संघर्ष तो हम सब भी करते है, क्यों इतने काम के बावजूद भी, हम तुझसे और उम्मीद करते है। क्या इसलिए? क्यूंकि तूने कभी किसी से कुछ कहा नही। मानली हमेशा अपनो की बात, जैसे होगा बस वही सही।

     आई, तू कधी थकून का नाही? का तू कधी आपल्या कृत्यातून पळून जात नाही? आपल्या थकवा वेदना, मला का करा बलिदानाची शक्ती, हे फक्त तुमच्यातच घडते. आम्ही सर्व संघर्ष, इतके सारे काम न करता, आम्ही आपल्याकडून आणखी अपेक्षा करतो असे का? कारण आपण कधीही कोणालाही म्हणत नाही. मनाली नेहमीच आपल्याबद्दल बोलत आहे, त्यासारखेच एक योग्य असेल.

     ये किसने कहा की, नारी कमज़ोर है। आज भी उसके हाथ में, अपने घर को चलाने की डोर है। वो तो दफ्तर भी जाए, घर भी संभाले। ऐसे हाल में भी कर दे, पति अपने बच्चो को भी उसके हवाले। एक बार उस नारी की ज़िंदगी जीके तो देख, अपने मर्द होने के घमंड, में तू बस यू बड़ी बड़ी ना फेक.। अब हौसला बन तू उस नारी का, जिसने ज़ुल्म सहके भी तेरा साथ दिया। तेरी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी, ख़ुशी से तेरे संग बाट लिया। चाहती तो वो भी कह देती, मुझसे नहीं होता। उसके ऐसे कहने पर, फिर तू ही अपने बोझ के तले रोता। आज नारी शक्ति का दिन है।


--AUTHOR UNKNOWN
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदीजानकारी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.03.2022-मंगळवार.