II होली II-निबंध क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, March 17, 2022, 01:54:25 AM

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Atul Kaviraje

                                             II होली II
                                          निबंध क्रमांक-2
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मित्रो,

      आज दिनांक-१७.०३.२०२२, गुरुवार है. "होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। ". हिंदी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको होली के इस पावन पर्व की अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए पढते है, लेख, महत्त्व, जIनकारी, निबंध, शायरी, बधाई संदेश, शुभकामनाये एवं अन्य.

                                २. पौराणिक कथाएँ

     होलिका दहन के इलावा और भी कई पौराणिक कथाएं हैं। जिसमें राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था।

                           ३. ऐतिहासिक कहानियाँ

     पौराणिक कथाओं में तो होली का वर्णन मिलता ही है। इसके साथ ही इतिहास में भी कई ऐसे शासक हुए हैं जो होली खेला करते थे। इसके प्रमाण मिलते हैं मुग़ल काल के इतिहास में। ऐसी कई तस्वीरें हैं जो इस बात की गवाही देती हैं कि होली सिर्फ हिन्दू ही नहीं अपितु मुसलामानों में भी उतनी ही प्रचलित रही है। अकबर-जोधाबाई से लेकर जहाँगीर-नूरजहाँ तक होली के शौक़ीन थे। ऐसा वर्णन मुग़ल इतिहास में मिलता है।

     जहाँगीर के होली खेलने के प्रमाण अलवर संग्रहालय में चित्रों के रूप में आज भी हैं।  इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के समय में तो उनके मंत्री होली के दिन उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।

                          कैसे इस त्यौहार का नाम होली पड़ा?

     होली के पर्व की शुरुआत ऐसी न थी जैसा इसका आज का स्वरुप है। प्राचीन काल में जब परिवार  की सुख समृद्धि के लिए विवाहित औरतें पूर्ण चन्द्र की पूजा करती थीं।  वैदिक काल में इसे नवात्रैष्टि यज्ञ के नाम से जाना जाता था। उस यज्ञ में खेत के अधपके अन्न को दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था।  उस समय अन्न को होला भी कहते थे। इसी कारन इस उत्सव का नाम होलिकोत्सव रखा गया।

     भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।

             होली पर निबंध में जानिए होली में रंगों का उपयोग कैसे शुरू हुआ?

     कहते हैं पूतना ने श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया। लेकिन श्री कृष्ण ने पूतना का ही वध कर दिया। पूतना वध के उपलक्ष्य में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की। इसके बाद सबने एक दूसरे के साथ रंग खेला। रंग खेलने कि शुरुआत श्री कृष्ण जी ने ही की थी।

                       कैसे मनाया जाता है होली का त्यौहार?

     होली दो दिनों का त्यौहार होता है, जिसमे प्रथम दिवस को सिर्फ होलिका दहन किया जाता है, जिसमे लकड़ियों और दूसरी जलाई जाने वाली चीजों का कुंड बना के जलाया जाता है। और साथ में नगाड़े बजाये जाते है। अगले दिन रंग खेलने का दिन होता है  जिसे धुरेडी भी कहते है।

     होली के दिन सब सुबह से ही रंग खेलना शुरू कर देते हैं। एक दूसरे के चेहरे पर गुलाल, अबीर और रंग लगाये जाते हैं। चारों और हर्षोल्लास का माहौल ही नजर आता है। बच्चे पिचकारियों में रंग भर-भर कर एक दूसरे पर डालते हैं। यह कार्यक्रम दोपहर तक चलता है। उसके बाद सब नहा-धोकर विश्राम करते हैं। शाम के समय में सब लोग अपने जान-पहचान के लोगों से मिलने जाते हैं। आपस में मिठाइयाँ बांटते हैं। कहते हैं होली प्यार-मोहब्बत का त्यौहार है। इस दिन दुश्मन भी दुश्मनी भुला कर गले मिलते हैं।

--संदीप कुमार सिंग
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अप्रतिम ब्लॉग.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.03.2022-गुरुवार.