गज़ल की तरह

Started by शिवाजी सांगळे, March 17, 2022, 04:04:07 PM

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शिवाजी सांगळे

गज़ल की तरह

बिखरे हैं रंग किसी गज़ल की तरह
सजी है शाम किसी गज़ल की तरह...

सुरमई रंगोंसा घुलता सांवला बदन
मानो एकसा हो रहा गज़ल की तरह...

मध्यम ताल मे, सर्द झोंके ये हवा के
लहराये जुल्फें किसी गज़ल की तरह...

खो ना जाएं कहीं रुप रंग वादियों में
पिघले है बर्फ़ किसी गज़ल की तरह...

मिलना ये धरती आसमां का रोज का
लो सजी शाम किसी गज़ल की तरह...

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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