पदचिन्ह

Started by शिवाजी सांगळे, April 12, 2022, 01:16:34 PM

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शिवाजी सांगळे

पदचिन्ह

विशालकाय इस जीवन पथ के
हम, तुम, सब यहां राहगीर सारे

लेकर संग जीविका एक अपनी
सोचकर गम, खुशी जीते हैं सारे

मानतेहैं उबड़-खाबड़ कभी इसे
समतल लगें आसान कभी न्यारे

साथ इसका, ये जीवन जबतक
अकलमंदी से ही चलना है प्यारे

समजबूझकर छोडऩे होंगे अच्छे
पथदर्शक थोडेसे पदचिन्ह हमारे

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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Atul Kaviraje

शिवाजी सर,

     सच कहा है आपने, यह जीवन एक विशाल पथ है, एक खत्म न होने वाली डगर है, जिस पर हर मनुष्य, मानव को अपने जीवनकाल मे असीम सुख-दुखो को भोगते हुए चलते  रहना है. किसीको भी यहा रुकना नही है. अथक, निरंतर, छोटे-लंबे पग, कदमोसे  इस पर चलते हुए एक अदृश्य, नजरोसे ओझल मंजिल को पार करना है. कभी साथ-साथ तो कभी अकेलेही. इस कठीन राह पर चलते-चलते ,राहगीर की भूमिका निभाते हुए, अनेक कठीनायियोका सामना करते हुए, अपने पीछे चले उन राहगिरोको रास्ता दिखाना है. अपने पदचिन्ह, पगछाप उनके लिये छोड पीछे न मुडकर, उनका पथ-प्रदर्शक होना है. जीवन कि यही तो व्याख्या है.

     प्रस्तुत "पदचिन्ह" इस कवितामे आपने  जीवन का सार यथार्थ रूप से हमें समझाया है. जीवन की इस मुश्किल डगर, राह को पार करते, अतीत के कुछ अच्छे-बुरे अनुभव, पीछे आनेवाले राहगिरो को निश्चित पथ -दर्शक, पथ-प्रदर्शक बनेंगे, इसम कोई दो राय नही है. बहोत हि सुंदर जीवन से भरी यह कविता पसंद आई. धन्यवाद.

     इन्सान वही जो मुश्किलोसे ना हारे
     जो पार करे कठीनायियोके डगर सारे
     फिर भी कुछभी ना पाते हुए,
     अपने पदचिन्ह छोड जो बने दुजो के सहारे.

     हे राहगीर, कुछ बाते मेरी भी सुनता जा
     कइयोंका पथ-प्रदर्शक तू बनता जा
     तेरे पास कुछ नही देने के लिये,
     बस उनकी राह तू बनता जा.


-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.07.2022-रविवार.