वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-3-आई है बरखा

Started by Atul Kaviraje, July 26, 2022, 01:24:31 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "वर्षा ऋतु कविता"
                                        कविता-पुष्प-3
                                     -----------------

मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते -तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                      "आई है बरखा"
                                     ---------------     

मस्ती-सी छलकाती
आई है बरखा,
बिजली का झूल गया
रेशमी अंगरखा !

कुहरे की नरम-नरम
चादरें लपेटे,
सूरज भी दुबक गया
धूप को समेटे।

कैसे टिकता, आखिर
बोझ था उमर का !

बादल की बादल से
हो गई लड़ाई,
बूँदों से बूँद लड़ी
कौन-सी बड़ाई?

आपस में लड़कर ही
अपना बल परखा !

कोस रही सावन को
अपने ही मन में,
पानी का ढेर लगा
सारे आँगन में।

दादी माँ कात न पाई
आज चरखा !

हवा चली, माटी की
खुशबू को छूकर,
हरियाली उतरी है
पेड़ों के ऊपर।

धरती का सूखा भी
चुपके-से सरका !
मस्ती-सी छलकाती
आई है बरखा !

--योगेन्द्र दत्त शर्मा
-----------------

                                  (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                      (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
                     -----------------------------------------


-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.07.2022-मंगळवार.