वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-17-तन के आँगन में वर्षा हुई प्यार की

Started by Atul Kaviraje, August 09, 2022, 01:03:34 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "वर्षा ऋतु कविता"
                                       कविता-पुष्प-17
                                     -----------------

मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                            "तन के आँगन में वर्षा हुई प्यार की"
                           --------------------------------

तन के आँगन में वर्षा हुई प्यार की;
मन में बहने लगी इक नदी प्यार की।

चार पल ही बिताये कभी साथ में,
लगता जी ली हो पूरी सदी प्यार की।

स्वाद अब और कोई सुहाता नहीं,
जब से प्राणों ने बूटी चखी प्यार की।

घुल गई है हवाओं में चारों तरफ़,
ऐसी साँसों में खुशबू भरी प्यार की।

ज़िन्दगी में अँधेरे रहे ही नहीं,
देख ली है नई रोशनी प्यार की।

कोरे मन पर उभरते रहे शेर सब,
जब नज़र ने ग़ज़ल इक लिखी प्यार की।

कामनाओं का वन लहलहाने लगा,
मिल गई जब जड़ों को नमी प्यार की।

वह समझने लगा बादशाहत मिली,
जिसको भी मिल गई इक कनी प्यार की।

टीस बन कर उभरती रहे उम्र भर,
हो 'भरद्वाज' यदि इक कमी प्यार की।

--चंद्रभानु भारद्वाज
-----------------

                                  (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                      (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
                     ----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.08.2022-मंगळवार.