आध्यात्मिक विचार लेख-माला-आनंदाचे घर-ब

Started by Atul Kaviraje, August 17, 2022, 08:23:04 PM

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Atul Kaviraje

                                "आध्यात्मिक विचार लेख-माला"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज वाचूया, श्री.पांडुरंग नागू  मोरे लिखित, "आध्यात्मिक विचार लेख-माला", या लेख-मालेतील,  "दिव्य  आनंदाचा  झरा", या सदरा-अंतर्गत एक वैचारिक आणि अध्यात्मिक लेख. या लेखाचे शीर्षक आहे.- "आनंदाचे घर"

                                      "आनंदाचे घर"
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         अवगुण  सांडिता  जाती  I उत्तम  गुण  अभ्यासिता  येति  II

     असे  समर्थ  रामदास  स्वामींनी , दासबोधात  सांगितले  आहे . म्हणून  अंगी  काही  मूलभूत  उत्तम  गुण  बाणवण्याचा  कसोशीने  प्रयत्न  करणे  हिताचे  ठरेल . जसे , निर्लोभी  वृत्ती , दिलेला  शब्द  पाळणे , निरहंकारी  वृत्ती , दुसऱ्यास  कधी  त्रास  न  देण्याची  वृत्ती , निर्भयता ,त्याग , पावित्र्य , निस्पृहता , निस्वार्थी  राहणे , दुसऱ्यांची  कदर  करणे , पूर्वजांचा  जो  काही  चांगला  घेण्यालायक  भाग  असेल  तो  आपल्या  जीवनाचा  भाग  करून  टाकणे . व्यक्तींपेक्षा  त्याने  दिलेल्या   विचारांवर , संस्कारांवर  श्रद्धा  ठेवावी  व  हे  सद्विचार  आपल्या  आयुष्यात  आणणे  म्हणजेच  श्रद्धेची  जपणूक . हीच  श्रद्धा  मनुष्याला  सामर्थ्य  देते , जीवन  घडविते ,प्रेरणा  देते .

         ज्या  गोष्टी  टाळता  येण्याजोग्या  नाहीत  त्या  अप्रिय , व  दुःखद  जरी  असल्या  तरी  त्या  धीराने  सहन  करण्याची  शक्ती  प्राप्त  करून  घेतली  पाहिजे . संसारात  एकमेकांशी  वाद  घालण्यापेक्षा  एकमेकांना  समजावून  घेण्याची  आवश्यकता  फार  आहे . माणसाच्या  मनाची  झेप  क्रियाशील  विचारांत  झाली  व  त्यांना  भगवंताचे  अधिष्ठान  लाभले  तर  मानव कूळ  " COMMON WEALTH OF MAN" निर्माण  होऊ  शकेल . कसाही  विचार  केला  तरी  वाटते  की  माणसाच्या  भोवतालच्या  वातावरणात  अशा  काही  सृष्ट  शक्ती  असाव्यात  , त्या  आपल्याला  दिसत  नाहीत  वा  जाणवतही  नाहीत . पण  आपल्याकडून  अचूक  पावले  टाकीत  असतात , आपला  सांभाळ  करीत  असतात .

        आपली  भारतीय  संस्कृती  उच्चरवाने  आपल्याला  सांगत  असते ----

1) सत्याचरण  रुपी  नावानेच  तुम्ही  तरून  जाल .

2) निरपराध  लोकांची  / प्राण्यांची  हिंसा  करणे , त्यांना  जिवंत  जाळणे  / ठार  मारणे  हे  प्रकार  महाभयंकर  आहेत . ते  टाळायलाच  हवेत .

3) सर्वांचे  सदोदित  हितचिंतनच  करीत  राहिले  पाहिजे .

4) उत्तम  संकल्पाने  माझ्या  हातून  सत्कर्मेच  घडावीत , अशी  इच्छा  बाळगावी .

5) दातृत्त्वबुद्धी  असण्याऱ्यांचे  ऎश्वर्य  कमी  होत  नाही .

6) शुद्ध  पवित्र  आचरणाने  परोपकारामय  जीवन  जगावे .

7) राष्ट्र  व  विश्व  यांचे  संवर्धन  ब्रह्मचर्य  तपाने  करावे .

8) तपाचरणानेच , साधनेनेच  ईश्वराच्या  स्वरूपाचे  आकलन   होते .

9) पवित्र  शास्त्रांचे  अध्ययन  करावे  व  पवित्र  व्हावे .

10) देवा  तूच  एक  आमचा  आहेस  व  आम्ही  तुझेच  आहोत , हि  जीवननिष्ठा  जोपासावी .

11) मी  निराळा , भगवान  निराळा  व  लोक  निराळे , अशी  भेदबुद्धी  मनात  न  ठेवता , मी  व  भगवान  एकचं  आहे , ही  भावना  जो  सर्वभूतांत  ठेवतो  व  सर्व  भुते  भगवंतात  व  आपल्यातही  आहेत  असे  समजतो  तो  खरा  भगवतभक्त  होय .

12) सामर्थ्य  हा  शरीराचा  धर्म  नसून  तो  मनाचा  धर्म  आहे  असा  योगशास्त्राचा  सिद्धांत   आहे .

     ही  तत्त्वे  लक्षात  घेऊन  आपला  जीवनक्रम  ठेवावा  व  तसे  वागण्याचा  प्रयत्न  करावा . 

          आपल्याला  परमेश्वराने  का  जन्मास  घातले  आहे  याचा  आपल्या  मनाशी  अंतर्मुख  होऊन  शोध  घ्यावा  व  जे  कार्य  आपले  जीवनकार्य  आहे , असा  अंतःकरणापासून  संदेश  मिळेल  ते  कार्य  प्रामाणिकपणे , निस्वार्थीपणे , तन -मन -धन  पूर्वक  व  परमेश्वरार्पण  बुद्धीने  करणे , ही  गोष्ट  ज्याला   साधली  त्याला  दैवी  जीवन  लाभले  असं  म्हणता  येईल . माणसाने  आपण  निमित्तमात्र  आहोत  अशी  मनाची  धारणा  ठेवावी . म्हणजे  जीवनाचा  खरा  हेतू  माणसाच्या  लक्षात  येऊन  उगवत्या  दिवसाचे  प्राप्त  कर्तव्य  निर्लेप  राहून  करता  येते , व  जीवनमुक्त  अवस्थेकडे  वाटचाल  अधिक  सुकर  होते . 

--श्री.पांडुरंग नागू  मोरे
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                       (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-इ साहित्य.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.08.2022-बुधवार.