वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-34-बरखा का दिन

Started by Atul Kaviraje, August 26, 2022, 01:08:49 AM

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Atul Kaviraje

                                     "वर्षा ऋतु कविता"
                                      कविता-पुष्प-34
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मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                     "बरखा का दिन"
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मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
मायावी मेघों ने सिर का सूरज काट लिया;
गजयूथों ने आसमान का आँगन पाट दिया;
फिर से असगुन भाख रही रजकिन।

मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
दूध-दही की गोरी ग्वालिन डरकर भाग गई;
रूप-रूपहली धूप धरा को तत्क्षण त्याग गई;
हुड़क रही अब बगुला को बगुलिन!

मैंने देखा :
यह बरखा का दिन!
बड़े-बड़े बादल के योद्धा बरछी मार रहे;
पानी-पवन-प्रलय के रण का दृश्य उभार रहे;
तड़प रही अब मुँह बाए बाघिन।

--केदारनाथ अग्रवाल
रचनाकाल: २७-०७-१९७९
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                                 (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                       (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.08.2022-शुक्रवार.