वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-35-बरखा की रात

Started by Atul Kaviraje, August 27, 2022, 02:01:32 AM

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Atul Kaviraje

                                     "वर्षा ऋतु कविता"
                                      कविता-पुष्प-35
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मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                     "बरखा की रात"
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दिशाएँ खो गयीं तम में
धरा का व्योम से चुपचाप आलिंगन !

धरा ऐसी कि जिसने नव
सितारों से जड़ित साड़ी उतारी है,
सिहर कर गौर-वर्णी स्वस्थ
बाहें गोद में आने पसारी हैं,
समायी जा रही बनकर
सुहागिन, मुग्ध मन है और बेसुध तन !

कि लहरों के उठे शीतल
उरोजों पर अजाना मन मचलता है,
चतुर्दिक घुल रहा उन्माद
छवि पर छा रही निश्छल सरलता है,
खिँचे जाते हृदय के तार
अगणित स्वर्ग-सम अविराम आकर्षण !

बुझाने छटपटाती प्यास
युग-युग की, हुआ अनमोल यह संगम,
जलद नभ से विरह-ज्वाला
बुझाने को सघन होकर झरे झमझम,
निरन्तर बह रहा है स्रोत
जीवन का, उमड़ता आज है यौवन

--महेन्द्र भटनागर
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                                 (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                       (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.08.2022-शनिवार.