मला आवडलेल्या चारोळ्या-चारोळी क्रमांक-59

Started by Atul Kaviraje, August 30, 2022, 09:00:46 PM

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Atul Kaviraje

                                  मला आवडलेल्या चारोळ्या
                                     चारोळी क्रमांक-59
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     --नवं-चारोळीकार  आज  विचार  करतोय , की  जीवनाचा  नेमका  अर्थ  काय  ? जीवन  मिळणं  म्हणजे  काय  ? ते  कसं  जगायचं  आणि  त्याची  नेमकी  व्याख्या  काय  ? जीवन  म्हणजे  आपल्याला  मिळालेला  जन्म  हा  नेमका  कुठे आणि कशाबरोबर  मेळ  खातो  ? या  जीवनाची  उपमा  कशाशी  करता  येईल  ? हा  जीवनाचा  प्रवास  कसा  सुरु  झाला , तो  पूर्ण  होईल  का, की  हा  डाव  अर्ध्यावरच  संपेल  ? याचा  अंत , शेवट  काय  ? हे  सारे  गूढ  प्रश्न , आणि  याची  कधीही  न  मिळणारी  उत्तरे , यांनी   हा  चारोळीकार  भंडावून  गेला  आहे , आणि  त्याने  आपल्यापुढे  हा  जीवनाचा  यक्ष-प्रश्न  उपस्थित  केला  आहे .

     असे  अनेक  प्रश्न  अन  त्यांची  उत्तरे  शोधीत , या  प्रश्नांची  उकल  धुंडाळीत  हा  नवं-चारोळीकार  आपले  दिवस  ढकलीत  असावा  असं  दिसतं . साधारणतः  सर्व  लोकं  या  मार्गावरूनच  जात  असतात . जीवनास, जीवन जगण्यास  अनभिज्ञ  अशी  ही  लोकं  मग  अचंबित  होतात , अडचणीत  सापडतात , आणि  मग  त्यांची  कुचंबणा  होते . तर  सांगायचं  मुद्दा  असा  की , या  जीवनाच्या  प्रवासात , या  नवं -चारोळीकारास  हयातीत, आयुष्यात  बरीच  लोकं  भेटतात . जी  ओळखीची  असतात , काही  अनोळखीही  असतात . जीवन-प्रवास  प्रवाहात वहात  जात  असता , या  लोकांची  गाठ-भेट  ही  होतंच  असते . काही  त्याच  प्रवाहात  सापडून  पुढे  जातात , तर  काही  प्रवाह-पतित  होतात .त्यांचा  रस्ता  चुकतो , ती  दुसऱ्या  मार्गाने  जात  असतात .

     हा  नवं-चारोळीकार  म्हणतोय , किंबहुना  त्याला  असा  अनुभव  आलाय , की  त्याला  जेवढी   जेवढी  माणसे , लोकं  या  जीवन-प्रवासात  मिळाली , भेटली  ती  काही  काळ  त्याच्याबरोबर  मार्ग-क्रमण   करीत  राहिली . त्याच्याबरोबर  अग्रेसर  होत  राहिली . त्याचा  हात  धरून , त्याचे  बोट  धरून  चालत  राहिली . त्याच्या  मार्गाने  जात  राहिली , किंवा  त्याला  मार्ग  दाखवीत  राहिली . त्याला  साथ  देत  राहिली , त्याची  होऊन  राहिली ,  त्यांच्याबरोबर  एका  नात्यात  घडली , जडली  गेली . पुढे  जाऊन  हा  चारोळीकार  असं  म्हणतोय , की  या  माणसांनी  ज्यांनी  ज्यांनी  त्याला  सोबत  केली  होती , ती   माणसे  काही  कालांतराने  वेगळी  झाली , अलग  झाली ,त्याला  ती  सोडून  गेली  होती . अगदी  पुरेसे  कारण , किंवा  काही  कारण  नसताही  त्याला  हा  असा  आगळा-वेगळा  अनुभव  त्यांचेसोबत  राहून  आला  होता . त्या  वेळी  त्यांनी  त्याला  साथ  तर  दिली  होती , सोबत  तर  केली  होती . पण  त्याला  साथ  देणारे  आता  फारच  कमी  उरले  होते , आणि  त्याला  सोडून  जाणाऱ्यांची  संख्याच  जास्त  होती . तर  सांगायचा  मुद्दा  म्हणजे  या  चारोळीकारास  असा  भला-बुरा  अनुभव  जीवन  जगता  आला  होता . जी  माणसे  त्याला  सोडून  गेली  होती , ती  आता  परतून   माघारी  येणे  कधीच  शक्य  नव्हते .  इतकं  की  त्यांनी  जातानाही  पाठी  वळून  पाहिलं  नव्हतं . याचंच  जास्त  दुःख  या  चारोळीकारास  झालं  आहे , आणि  या  अनुभवावरूनच  त्याने  ही  चारोळी  रचली  असावी . त्याला  आता  जीवन  म्हणजे   काय  हे  पुरेपूर  कळले  असावे .

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जीवनाच्या प्रवासात
अनेक लोकं भेटतात
साथ देणारे कमी अन
सोडून जाणारेच जास्त असतात.
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--नवं-चारोळीकार
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                       (साभार आणि सौजन्य-मराठी विचार.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.08.2022-मंगळवार.