सिंहावलोकन-अक्षर छत्तीसगढ़--क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, September 22, 2022, 09:38:57 PM

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Atul Kaviraje

                                     "सिंहावलोकन"
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मित्रो,

     आज पढते है, श्री राहुल सिंग, इनके "सिंहावलोकन" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है-"अक्षर छत्तीसगढ़"

                                अक्षर छत्तीसगढ़--क्रमांक-१--
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                    सुतनुका का प्रेम संदेश--

     'ओड़ा-मासी-ढम', अजीब से लगने वाले ये छत्तीसगढ़ी शब्द, विद्यारंभ संस्कार के समय लिखाए जाने वाले 'ओम्‌ नमः सिद्धम्‌' का अपभ्रंश हैं, यानि ककहरा (वर्णमाला) 'क ख ग घ' या 'ग म भ झ' का अभ्यास, इस मंत्र से आरंभ होता था। अब भी कहीं-कहीं पाटी-पूजा के रिवाज में यह प्रचलित है। इस मंत्र का उपयोग विनम्रतापूर्वक अपनी अपढ़-अज्ञानता की स्वीकारोक्ति के लिए भी किया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पुराने जमाने के सबूत कम उजले नहीं हैं।

     पहले कुछ बातें, लिखावट की। सभ्यता के क्रम में विचारशील मानव ने अपने भावों को भाषा में और फिर भाषा को लिपि में ढालकर, दूरी और काल की सीमाओं को लांघने का साधन विकसित किया है। हड़प्पा सभ्यता की ठीक-ठीक पढ़ी न जा सकी लिपि और मौर्यकाल के प्रमाणों के बीच, लगभग 2500 साल पुराने बौद्ध ग्रंथ 'ललित विस्तार' में 64 तथा जैन सूत्रों में 18 लिपियों की सूची मिलती है। इन्हीं सूचियों की ब्राह्मी लिपि से विकसित (भारत की लगभग सभी लिपियां और) हमारी आज की देवनागरी लिपि, सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि मानी गई है। यही नहीं, भले ही कागज का अविष्कार लगभग 2000 साल पहले चीन में हुआ माना जाता है, लेकिन 2400 साल पहले निआर्कस ने लिखा है कि हिन्दू (भारतीय) लोग कुंदी किए हुए कपास पट (कपड़े जैसे कागज) पर पत्र लिखते हैं।

     छेनी, लौह-शलाका, बांस, नरकुल और खड़िया लेखनी बनती थी और मसि या स्याही सामान्य प्रयोजन के लिए कोयले को पानी, गोंद, चीनी या अन्य चिपचिपा पदार्थ मिलाकर बनाई जाती थी। स्थायी स्याही लाख का पानी, सोहागा, लोध्रपुष्प, तिल के तेल का काजल आदि को मिलाकर खौलाने से बनती थी। भूर्जपत्रों पर लिखावट के लिए उपयोगी, बादाम से बनाई गई स्याही तथा रंगीन स्याही का उल्लेख व तैयार करने का विवरण भी पुरानी पोथियों में प्राप्त होता है।

     लिखना, लिपि, ग्रंथ जैसे शब्दों के मूल में लेखन की क्रिया-प्रक्रिया ही है। 'लिख' धातु का अर्थ कुरेदना है। 'लिपि' स्याही के लेप के कारण प्रचलित हुआ। 'पत्र' या 'पत्ता' भूर्जपत्र और तालपत्र के इस्तेमाल से आया। पत्रों के बीच छेद में धागा पिरोना 'सूत्र मिलाना' है और सूत्र ग्रंथित होने के कारण पुस्तक 'ग्रंथ' है, जबकि 'पुस्त' शब्द का अर्थ पलस्तर या लेप करना अथवा रेखाचित्र बनाना है। यानि ग्रंथ बनने की प्रक्रिया में पहले पत्रों पर लोहे की कलम अथवा सींक से अक्षर कुरेदे जाते थे, स्याही का लेप कर अक्षरों को उभारा जाता था, छेद बना कर उसमें धागा पिरोया जाता था तब वह ग्रंथ बनता था।

--राहुल सिंग 
(Tuesday, December 21, 2010)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अकलतIरI.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.09.2022-गुरुवार.