सिंहावलोकन-अक्षर छत्तीसगढ़--क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, September 22, 2022, 09:40:31 PM

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Atul Kaviraje

                                     "सिंहावलोकन"
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मित्रो,

     आज पढते है, श्री राहुल सिंग, इनके "सिंहावलोकन" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है-"अक्षर छत्तीसगढ़"

                                अक्षर छत्तीसगढ़--क्रमांक-2--
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                        किरारी काष्‍ठ स्‍तंभ--

     छत्तीसगढ़ में सभ्यता ने लिखावट के पहले-पहल जो प्रमाण उकेरे उनमें उड़ीसा की सीमा पर स्थित विक्रमखोल का चट्टान लेख है, जो हड़प्पा और ब्राह्मी लिपि के संधिकाल का माना गया है। आगे बढ़ते ही साक्षर छत्तीसगढ़ की तस्वीर साफ होती है, सरगुजा के रामगढ़ में, जहां पत्थर पर उकेरा, दुनिया का सबसे पुराना प्रेम का पाठ सुरक्षित है- 'सुतनुका देवदासी और देवदीन रूपदक्ष' का उत्कीर्ण लेख। किरारी से मिले लकड़ी पर खुदे दुनिया के सबसे पुराने कुछ अक्षर आज भी महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर में सुरक्षित हैं, जिसमें तत्कालीन राज व्यवस्था के अधिकारियों के पदनाम हैं और यहीं कुरुद का वह ताम्रपत्र भी है, जिसमें राजकीय अभिलेखागार के अस्तित्व और ताम्रपत्रों के चलन में आने की पृष्ठभूमि पता लगती है। महाभारत में उल्लिखित छत्तीसगढ़ के ऋषभतीर्थ-गुंजी में एक-एक हजार गौ के दान का हवाला है वहीं छत्तीसगढ़ी का सबसे पुराना नमूना, दन्तेवाड़ा के दुभाषिया शिलालेख में पढ़ने को मिलता है।

     मत्स्यपुराण का उल्लेख है - ''शीर्षोपेतान्‌ सुसम्पूर्णान्‌ समश्रेणिगतान्‌ समान। आन्तरान्‌ वै लिखेद्यस्तु लेखकः स वरः स्मृतः॥'' अर्थात्‌ उपर की शिरोरेखा से युक्त, सभी प्रकार से पूर्ण, समानान्तर तथा सीधी रेखा में लिखे गए और आकृति में बराबर अक्षरों को जो लिखता है वही श्रेष्ठ लेखक कहा जाता है। यह कोटगढ़ (अकलतरा) के शिलालेख के इस हिस्‍से में घटा कर देखें।

     वृहस्पति का कथन है - ''षाण्मासिके तु सम्प्राप्ते भ्रान्तिः संजायते यतः। धात्राक्षराणि सृष्टानि पत्रारूढान्‍यतः पुरा॥'' अर्थात्‌, किसी घटना के छः माह बीत जाने पर भ्रम उत्पन्न हो जाता है, इसलिए ब्रह्मा ने अक्षरों को बनाकर पत्रों में निबद्ध कर दिया है। किन्तु भ्रम से बचने के लिए ब्रह्मा द्वारा बनाई अक्षरों की लिपि 'ब्राह्मी' पढ़ना ही भुला दी गई और जब 1837-38 में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी की पूरी वर्णमाला उद्‌घाटित की, तब देवताओं का लेखा, बीजक या गुप्त खजाने का भेद समझे जाने वाले लेख, इतिहास की रोमांचक जानकारियों का भंडार बन गए और भारतीय संस्कृति की समृद्ध सूचनाओं का खजाना साबित हुए। पत्थरों पर खुदी इबारत में तनु भावों की कविता पढ़ ली गई और तांबे पर उकेरे गए अक्षर, सुनहरे-रुपहले इतिहास के पन्ने बने तब अक्षरों में हमारा गौरवशाली अतीत उजागर हुआ।

     ये सब तो पुरानी बातें हैं। आज का समय 'बायनरी' के दो संकेत-अक्षरों का है, लेकिन इसमें संवेदना का अदृश्य आधा अक्षर जुड़कर 'ढाई आखर' प्रेम के बनते हैं, जो छत्तीसगढ़ में रामगढ़ की पहाड़ी में उकेरे गए और आज भी कायम हैं। छत्तीसगढ़ी अक्षर-ब्रह्म नमन सहित पढ़ाई-लिखाई की आरंभिक लोक-उच्चारण स्तुति 'ओड़ा-मासी-ढम' अनगढ़ और बाल-सुलभ तोतली सी हो कर भी, सार्थक और शुभ है।

                            आपस की बात :--

     इसके साथ कुछ पुराने गोरखधंधों का स्मरण। गुरुजी ने कभी कहा कि पुराने अभिलेख पढ़ना सीखना है तो उसी तरह से खुद लिखा करो, बस फिर क्या था, छेनी तो नहीं पकड़ी, लेकिन कागज कलम से नरकुल तक आजमा ही लिया। यानि गुरुओं की प्रेरणा से, मत्स्य पुराण के निर्देश अनुरूप, 'श्रेष्ठ लेखक' बनने की धुन में कम कलम-घिसाई नहीं की है हमने भी, इसका एक नमूना, कोई बारह सौ साल पुरानी ब्राह्‌मी के कोसलीय विशिष्टता वाली पेटिकाशीर्ष लिपि में ताम्रपत्र पर ग्रामदान प्रयोजन से उकेरे गए अक्षरों की नकल, जिसके पहले चिह्‌न को 'ओम्‌' या 'सिद्धम्‌' पढ़ा जाता है। मूल लिपि की नकल के साथ नागरी पाठ भी है, इसके सहारे थोड़े अभ्‍यास से आप भी खजानों का भेद पा सकते हैं।

     सभी गुरुजनों का सादर स्मरण, विशेषकर, जिन्होंने अक्षरों की नकल उतारने की बजाय उन्हें लिखना, लिखे को पढ़ना और पढ़े को समझने की, आत्मसात करने की शिक्षा दी। सिखाया कि जो पढ़ो, पसंद आए, वह मुखाग्र और कंठस्थ रहे न रहे, हृदयंगम हो।

     डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर और डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम गुरु-द्वय की उदारता अबाध रही, अपनी संकीर्णता के लिए स्वयं जिम्मेदार हूं, लेकिन गुरुओं के कर्ज (ऋषि-ऋण) का बोझ सदैव ढोना चाहता हूं।

--राहुल सिंग 
(Tuesday, December 21, 2010)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अकलतIरI.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.09.2022-गुरुवार.