असुविधा-अमितोष नागपाल की कविताएँ-कविता क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, September 23, 2022, 10:07:36 PM

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Atul Kaviraje

                                        "असुविधा"
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मित्रो,

     आज पढते है, "असुविधा" इस ब्लॉग की कुछ कविताये.

     राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक अमितोष नागपाल की ये कविताएँ अलग-अलग होते हुए भी एक कविता सीरीज सी चलती हैं. कहीं सवाल करती, कहीं उलझती और कहीं जैसे ख़ुद से ही बतियाती. एक ऐसे समय में जब एक तरफ़ कैरियर को सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है और दूसरी तरफ़ देश में प्रतिरोध के अनेक आन्दोलन उभर रहे हैं, अमितोष की कविताओं की यह सीरिज उनके साथ कलाकार या यों कहें तो बुद्धिजीवी की भूमिकाओं की ज़रूरी पड़ताल करती हैं.

                               अमितोष नागपाल की कविताएँ-- 
                                       कविता क्रमांक-१--
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'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई
शुक्रिया स्टूडेंट्स
नंबर सबका आना है
क्या सोच के हँसते हो मेरे भाई ?
ये बुरा दौर है यार मेरे
हमें कभी तुम कागज कर दो
डरना मत मेरे दोस्त
गाड़ी कैसे ठीक हो पाएगी
उस शोर में

ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई
गुस्सा आए दबा लो,
आँख भरे तो छुपा लो
आवाज़ अपनी दबा लो

किसी की बात सुनके
आक्रोश आए
सड़कों पे जुलूस देख के जोश आए

ज़िंदा होने का अहसास हो
खून उबलने लगे
नींद गायब हो
आँख जलने लगे

तो ध्यान रखना तुम्हारी
'ये साइड' किसी के सामने ना आए

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

ये बम्बई है मिमियाता हुआ
हर कोई अपने कैरियर को बचाता हुआ
तुम्हारा काम है पार्टियों में हाजिरी भरना

बंद करो आसाम की
कश्मीर की बातें करना
तुम्हारा क्या लेना इन सबसे
तुम इतने सेंटी हो गए कबसे?

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

पर देश?

तुम थोड़े चला रहे हो यार
अपने आप चलता है
तुम अपनी फ़िल्म चलाओ
सही जगह पे एनर्जी लगाओ

आसाम की वजह से
तुम्हे नींद नहीं आ रही है
तो... तो... नेटफ्लिक्स पे पिक्चर देखो
या ट्रेवल कर लो
सिनेमा जाओ
और ये पंगे आज के हैं क्या?
हिस्ट्री पता है?
भूगोल?
सब सही है भाई मेरे
इतना ज़्यादा मत घबराओ

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

ज़्यादा निडर बनोगे तो
कैसे होगा नाम फिर?
सब तुम से डर जाएँगे तो
कौन देगा 'काम' फिर?

भीड़ देख कहाँ पे है
ताली का ज़ोर जहाँ पे है
वहाँ जाके तस्वीर खिंचाओ
ना ख़ुशी से दोस्ती
ना नफरतों से बैर रख
तुम देखो 'जश्न' है किस तरफ
और वहाँ शामिल हो जाओ...

देख ना अगल बगल
सब हैं मौज मस्ती में
छोड़ ना ये सब
लगी आग कौन सी बस्ती में?
देश वेश क्या है बे
लोग तो मरते ही हैं
अपने यहाँ तू देख ना
सब तो भाई खान है
तू बेकार में परेशान है...

और बता Artist
New year का क्या प्लान है?

--अमितोष नागपाल
(जनवरी 23, 2020)
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                 (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-असुविधा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.09.2022-शुक्रवार.