अनुनाद-कविता-आज का राग भीमपलासी

Started by Atul Kaviraje, September 23, 2022, 10:14:52 PM

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Atul Kaviraje

                                       "अनुनाद"
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मित्रो,

     आज पढते है, श्री शिरीष कुमार मौर्य इनके "अनुनाद" इस कविता ब्लॉग की एक कविता. इस कविताका शीर्षक है-"आज का राग भीमपलासी"

                                आज का राग भीमपलासी--
                          (मल्लिकार्जुन मंसूर का गायन सुनकर)
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छत पर पड़ी हैं
न जाने कितनी चीजें
कपड़े
बडियां
पापड़
अचार
इन्हें धूप की ज़रूरत है
और मुझे इन सबको बचाना है
अपनी देह
और
आत्मा के साथ

बाहर से आती हैं न जाने कितनी आवाजें
कभी फेरीवाले की
तो कभी रद्दीवाले की
पसीने से भीगा एक आदमी पूछता है
किसी का पता
कभी-कभी आने वाला बूढ़ा भिखारी भी
आ धमकता है
आज ही

लेकिन
इस सबके बीच पता नहीं क्यों
मेरे भीतर एक गहरी उदासी है
रेडियो पर
विलिम्बत लय में गाती हुई
ये आवाज़
मानो बहुत दूर से आती है

उधर
हड़बड़ी में नंगे पा¡व
छत पर
बन्दर भगाने दौड़ी जाती है
मेरी पत्नी

इधर
अचानक पहचान जाता हूँ मैं
ये राग भीमपलासी है।

--शिरीष कुमार मौर्य
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                       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अनुनाद.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.09.2022-शुक्रवार.