अक्षरों का उन्मुक्त आकाश-कविता-बुद्ध हो जाओ

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2022, 09:09:03 PM

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Atul Kaviraje

                                "अक्षरों का उन्मुक्त आकाश"
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मित्रो,

     आज पढते है, श्रीमती सुप्रिया'"रानू", इनके "अक्षरों का उन्मुक्त आकाश" इस कविता ब्लॉग की एक कविता . इस कविता का शीर्षक है-"बुद्ध हो जाओ"

                                   बुद्ध हो जाओ--
                               (बुद्ध जयंती पर विशेष)
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जब भौतिकता में रमनेवाला मन,
चिर शांति में खोना चाहे,
अंतस का कोलाहल जब,
अचलता सा होना चाहे,
लालसाओं से भरा यह मन जब,
सब भूलकर सोना चाहे..,

त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसो से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ...

दुनिया के मयाजालों में,
भौतिकता के जंजालों में,
सामाजिक सारे बवालों में,
अंतर्मन तक कोलाहल भर जाए,
क्षणिक प्रतिक्रियाओं से भी,
जब कोई मन क्षिप्त कर जाए,

त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसों से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ...

जुटा के सारे सुख संसाधन,
कर न्यौछावर सब प्रेमधन
त्याग,समर्पण कर्तव्यनिष्ठता
देकर भी मन निराशा से भर जाए,
मन चाहे नईं कोंपलें उगाना अंतर्मन में,
करना हो नवनिर्मित कुछ जीवन मे,

त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसों से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ....

--सुप्रिया'"रानू"
(Monday, April 30, 2018)
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                  (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-रानूसूपू.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.09.2022-शनिवार.