व्याकुल पथिक-छू कर मेरे मन को ...क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2022, 09:23:28 PM

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Atul Kaviraje

                                    "व्याकुल पथिक"
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मित्रो,

     आज पढते है, "व्याकुल पथिक" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है-"छू कर मेरे मन को ..."

                               छू कर मेरे मन को ...क्रमांक-१--
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छू कर, मेरे मन को, किया तूने, क्या इशारा
बदला ये मौसम, लगे प्यारा जग सारा...

     ऐसी  "छुअन"  की चाहत भला किसे नहीं होती ।
मन का मन से स्पर्श , शब्दों का हृदय से स्पर्श और ऋतुओं का प्राणियों से ही नहीं वरन् वनस्पतियों से भी स्पर्श सुख-दुख की अनुभूति करा जाता है। इस हेमंत और शिशिर ऋतु में बर्फिली हवाओं की छुअन जब चुभन देती है , तो अग्नि का ताप दूर से ही सुखद स्पर्श देता है। कुछ सम्बंध मनुष्य के जीवन में ऐसे भी होते हैं कि दूर हो कर भी उसका छुअन मधुर लगता है और कभी-कभी तन से तन का मिलन होकर भी कुछ नहीं मिलता है ।  परस्पर समर्पण भाव का स्त्री- पुरूष के जीवन में अपना ही कुछ आनंद है।

गीत की इन पंक्तियों की तरह ही-

न जाने क्या हुआ जो तूने छू लिया
खिला गुलाब की तरह मेरा बदन
निखर निखर गई सँवर सँवर गई
बनाके आईना तुझे ऐ जानेमन...

      युवा ही नहीं प्रौढ़ और वृद्ध  दम्पति को जब कभी सुबह हाथों में हाथ डाले प्रातः भ्रमण पर देखता हूँ, उस स्पर्श की भावनात्मक उर्जा की अनुभूति कैसी होती होगी सोचता हूँ। इसे तो जिनका कोई जीवन साथी हो, हमदर्द हो ,वो ही बयां कर सकता है , यदि मैं अपने मन को इस प्रेम सागर की गहराई में उतारने की मासूम सी कोशिश करूँ भी , तो "चुभन "के सिवा कुछ न मिलेगा।

      हाँ, इस छुअन को पत्नी और प्रेयसी की जगह माँ के स्पर्श  में निश्चित महसूस किया हूँ । बचपन कब का बीत गया फिर भी स्मृतियों में जब भी माँ चली आती है,दर्द कैसा भी हो पल भर के लिये ही सही ओठों पर एक मुस्कान तो आ ही जाती है,उनके स्नेह भरे स्पर्श को याद कर । यही मेरे जीवन भर की पूंजी है ।

     बात यहीं से शुरु करता हूँ , इस छुअन के अद्भुत प्रभाव का , जब कभी कोई सच्चा गुरू यदि कर्मपथ का अनुसरण करने वाले शिष्य की ज्ञानेन्द्रियों को अपनी उर्जा देने के लिये स्पर्श करता है , तो किस तरह से उसके मन - मस्तिष्क में एक विस्फोट सा होता है। रामकृष्ण परमहंस ने ईश्वर की खोज में निकले स्वामी विवेकानंद की जिज्ञासाओं को स्पर्श के माध्यम से ही शांत किया न..। गुरु की उर्जा का छुअन योग्य शिष्य को विवेकानंद बना देती है।

     मुझे भी एक अवसर मिला था। वाराणसी में कम्पनी गार्डेन में निठल्ले भटकने के दौरान गुरु स्वयं ही अपने आश्रम पर ले गये । लगभग छह माह रहा भी वहाँ। परंतु नियति में मेरे "पथ प्रदर्शक" नहीं " पथिक " बनना लिखा था।  वहाँ से मुजफ्फरपुर और फिर कालिम्पोंग चला गया। तन- मन से पूरी तरह स्वस्थ था आश्रम में , किसी तरह की मलीनता नहीं थी। गुरु की कृपा जब मिलने को हुई,तो परिजनों की याद आ गयी। अब एक अतृप्त मन लिये इस रंगमंच पर विदूषकों सा थिरक रहा हूँ।

     बालक जब रूदन करता है , तो माँ उसे अपनी वाणी से शांत करवाने का प्रयत्न करती है। लेकिन , बच्चा तब और तेज रोने लगता है, वह शांत तभी होता है जब माँ उसे गोद में उठा लेती है। माँ का प्यार भरा यह स्पर्श उसके कष्ट का हरण करता है। आपने ने भी देखा होगा कि माँ जब अपने शिशु का तेल मालिश करती है , तो तनिक रोने के बाद वह किस तरह से खिलखिलाकर हँसने लगता है। ऐसा इसलिये कि माँ के स्पर्श से उसके  ममत्व भरे उर्जा की अनुभूति उस अबोध बच्चे को होती है। छुअन क्या है,यह वह स्नेह है जिसकी भाषा पशु-पक्षी ही नहीं पेड़- पौधे तक समझते हैं।

--व्याकुल पथिक
(Saturday, 29 December 2018)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-व्याकुल पथिक.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.09.2022-शनिवार.