विश्वमोहन उवाच-मानस की प्रस्तावना--क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, September 25, 2022, 09:40:08 PM

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Atul Kaviraje

                                     "विश्वमोहन उवाच"
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मित्रो,

     आज पढते है, विश्वमोहन इनके "विश्वमोहन उवाच" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है-"मानस की प्रस्तावना"

                             मानस की प्रस्तावना--क्रमांक-3--
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     अनिर्वचनीय महिमा से मंडित वह परम शक्ति तुलसी के राम हैं . बड़ी मासूमियत और आत्मीयता से  राम के नाम को वाचा है - ;राम कहलानेवाले ईश्वर हरि की मैं वन्दना करता हूँ' . 'राम कहलानेवाले' अर्थात जिनका नाम राम है . निहितार्थ में यहाँ नाम राम पर चढ़कर बोलता है . कहीं  इशारा  ये तो नहीं कि नाम की महिमा राम से बढ़कर है . वह भगवान हरि के नाम की वन्दना करते हैं . उस अलौकिक, अमूर्त्त व  अदृश्य आभा को कितनी आसानी से तुलसी ने अपने सरल सांसारिक संज्ञा मे पकड़ लिया है. यही तो तुलसी के कवित्त की खासीयत है . वह मानवीकरण की कला में पारंगत हैं . अलौकिक शक्ति की लौकिक पहचान ! लोकातीत आध्यात्म का लोक सुबोध आख्यान !

     भव सागर की फाँस क्या है- संसार के समुन्दर मे लीलने को आतुर  माया और भ्रम रुपी तैरते मगर ! और इनके स्त्रोत कहाँ हैं? 'यन्मायावश्वर्त्तिं ' और 'यत्सत्त्वाद्'...यथाहेर्भ्रमः' अर्थात माया और भ्रम से मुक्ति पानी है तो उसी की शरण में आत्मसमर्पण जो इसके स्त्रोत हैं !  माँ के क्रोध से बचने के लिये उसीकी गोद में अपने को अर्पित कर बालक जैसे अपने को उसकी ममता के आँचल मे छूपा लेता है . कितना शीतल है करुणा का यह क्रोड़ ! और कितना निश्छल आग्रह है यह समर्पण का ! और फिर इस लोकलुभावन प्रतिबिम्ब में तिरता एक और अलौकिक दर्शन – माया और भ्रम से मुक्ति के कारण भी हैं और इन समस्त कारणों से परे भी हैं ये नामधारी राम . रचयिता भी, और उस रचना से परे भी !

"सर्वेन्द्रिय गुणाभासम , सर्वेन्द्रिय विवर्जितम
असक्तम सर्वभृत च एव निर्गुणम गुणभोक्तृ च"

     भव अर्थात संसार . 'उत्पति, स्थिति और संहार' इस संसार के ज्यामितिय नियामक हैं. इस वीमा त्रय में सरकती जीवात्मा सांसारिकता के मोहपाश की जकड़न के क्लेश में तड़पती छटपटाती है . इससे मुक्ति ही परम कल्याण है, मोक्ष है. और इस कैवल्य प्राप्ति का कारण भी वही है जो सर्जन , पालन और विनाश का सूत्रधार है. वह हैं-- सर्वशक्तिसमंविते- आदिशक्ति-मतृरुपेणसंस्थिता-श्रीरामवल्लभा श्रीसीताजी .

     जगत-जंजाल एवं जन्म-मरण के चक्र फाँस से महात्राण पाने की अभिलाषा ही मानस का कथ्य है. कवि विशुद्ध वैज्ञानिक भाव के साथ सीता राम के गुण समूह रुपी पवित्र कानन में विचरण करने को उद्धत है.  उसकी भावनाओं में कोई भटकाव नहीं है बल्कि एक ज्ञान दीप्त कार्य-कारण-प्रसूत व्यवस्था है . वाल्मीकि का काव्य कौशल, शिल्प-विधान एवम इतिवृतात्मक भाष्य सम्पूर्ण अर्थों में वैज्ञानिक हैं. साथ ही , राम कथा अतुलित बलधाम हनुमानजी की अद्भुत गाथाओं का आख्यान है. इन गाथाओं में महान भक्त की भावनाओं का अपने आराध्य में चरम समर्पण की लय है .  भावनाओं की अँजुरी उड़ेलता यह  निश्छल भक्त कभी आराजक नहीं होता.  हमेशा प्रशांत, व्यव्स्थित, विचारों में क्रमबद्ध, योजनाओं में वैज्ञानिक और अंतःकरण से विशुद्ध. भक्त भगवान में और भगवान भक्त में . पूर्ण विलय . कोई स्वरुपगत भिन्नता नहीं. भगवान पदार्थ तो भक्त अणु ! और फिर भक्त अणु तो भगवान परमाणु ! तो तुलसी भी  इस पदार्थ-अणु-परमाणु अवगुंठन की अद्भुत लीला का उद्घाटन करेंगे, भक्ति-भाव की विलक्षण छटा को परोसेंगे और आध्यात्म की धड़कनों की वैज्ञानिक पड़ताल करेंगे मानस में . अविनाशी ब्रह्म, अनित्य सृष्टि, मूल पंच तत्व, और समग्र चेतन ऊर्जा – इन सभी पड़ावों से मानस की महायात्रा गुजरेगी.

     गुरु के आशीष से ही ज्ञान के मानसरोवर मे डूबकी लगायी जा सकती है. गुरु की कृपा के आलोक से प्रदीप्त शिष्य समस्त विकृतियों से मुक्त हो जाता है और उसका स्वरुप चिन्मय चिरंतन और शाश्वत हो जाता है . भगवान शिव नित्य और ज्ञानमय गुरु हैं . वह समस्त लोकों के कल्याण के कारक हैं. नीलकंठ की शरण में आये चन्द्रमा को अपनी वक्रता के बावजूद पूजा जाता है . अतः मानस यात्रा शिव सदृश शिष्य-वत्सल गुरु के साहचर्य में होगा.

     अपने अतः करण में गहरे पैठे ईश्वर के दर्शन अर्थात  आत्म बोध और इस चरम गंतव्य को छूने के लिये  सबसे महत्वपूर्ण हैं दो कारक – 'श्रद्धा' और 'विश्वास' . श्रद्धा आध्यात्म का आलम्ब है तो विश्वास विज्ञान का विस्तीर्ण वितान. सम्पूर्ण 'अर्धनारीश्वर' स्वरूप में पार्वती आध्यात्म हैं तो शिव विज्ञान .  इस बिम्ब-विधान में मानस आध्यात्म और विज्ञान की महाशक्तियों का आहावन कर अपनी विराट यात्रा का उद्घोष करता है . 

--विश्वमोहन
(Saturday, 20 December 2014)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-विश्वमोहन उवाच.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.09.2022-रविवार.