हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-29-बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो

Started by Atul Kaviraje, September 27, 2022, 09:36:46 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-29
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-29. इस कविता का शीर्षक है- "बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो"

                            "बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो"
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बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो,
गर यकीं नहीं तो दिल लगाते ही क्यूँ हो!

जब आकर चले जाना फितरत में है तेरी,
तो बेवजह जिन्दगी में आते ही क्यूँ हो!

अपना नहीं सकते जिसे उम्रभर के लिए,
उसे जमाने से अपना बताते ही क्यूँ हो!

जिन रिश्तों को समेटना आता नहीं तुम्हें,
उन रिश्तों को फिर आजमाते ही क्यूँ हो!

जब वजह दे नहीं सकते पलभर मुस्कुराने की,
तो खामखां इस तरह से रुलाते ही क्यूँ हो!!

--दीपक
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.09.2022-मंगळवार.