हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-32-दिल का दर्द बयाँ करती

Started by Atul Kaviraje, September 30, 2022, 09:19:14 PM

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Atul Kaviraje

                                      "हिंदी कविता"
                                     पुष्प क्रमांक-32
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-32. इस कविता का शीर्षक है- "दिल का दर्द बयाँ करती"

                               "दिल का दर्द बयाँ करती"
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बची हर सांस गिनता हूँ, तेरी साँसों में ठहरा हूँ,
दबी हर बात सुनता हूँ, तेरी बातों सा गहरा हूँ ।

ज़माने से न भागा हूं, ज़माने में ही उतरा हूँ,
तेरे राज़ों को रख दिल में, ज़मी पर आज बिखरा हूँ।

दिलों में जख्म है ढेरों, कई है दर्द के किस्से,
बची है अब ज़फा तेरी, उसी से बस मैं तेरा हूँ।

यही बस सोचता हूँ मैं कि ये अब राज़ है कैसा?
मैं सोचूँ ये ही बस दिनभर, मैं तेरा हूँ या मेरा हूँ!

मैं जो भी दर्द लिखता हूँ उसे तू रोज़ गाती है,
कभी ना दूर तुझसे हूँ लबों का गीत तेरा हूँ।

ये कैसी बेरुखी तेरी जो अब तक दूर तू मुझसे,
ये मेरे दिल की हमदर्दी, मैं अब भी अक्स तेरा हूं।

ये दरवाज़े भले ही बंद कर लेना तेरे दिल के,
मगर ये याद रखना तुम ,इसी पट का मै पहरा हूँ।

ये मेरा और तेरा दिल फ़लक पर ही चमकता था,
मैं अब टूटा सितारा हूँ ज़मी पर आज ठहरा हूँ।

मैं तारा हूँ तेरे दिल का मुकम्मल आसमां तू है,
मुकम्मल दिल हवेली है, फ़क़त उसका मैं कमरा हूँ।

तू पूरा है समंदर सुन तू पूरा आसमां भी है,
बची छोटी ज़मी तेरी ,बचा उसका मैं ज़र्रा हूँ।

मैं अब आवाज़ दूं तुझको , ये हिम्मत ना बची मुझमें
फसा हूँ ज़ख्म में इतने, लबो का बोल ठहरा हूँ।

--©प्रयास शर्मा 'आशुतोष'
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.09.2022-शुक्रवार.