आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ...-कविता-गूगल - कुछ प्रेम कविताएं

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2022, 10:00:19 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                              "आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ..."
                             ----------------------------

मित्रो,

     आज पढते है, श्री.अनूप भार्गव इनके "आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ..." इस कविता ब्लॉग की एक कविता . इस कविता का शीर्षक है- "गूगल - कुछ प्रेम कविताएं"

                               गूगल - कुछ प्रेम कविताएं--
                              -----------------------

1.
क्या तुम्हारा नाम 'गूगल' है ?
क्यों कि तुम में वो सब है ..
जो मैं अक्सर ढूँढता रहता हूँ ।

2.
मेरा प्रश्न पूरा करने से पहले ही
तीन सुझाव और छः उत्तर
तुम ना ! सचमुच में गूगल हो ....

3.
मैं ज़िन्दगी का हर एक कठिन प्रश्न
गूगल से पूछने के बाद
तुम्हारी ओर देखता हूँ ,
और अक्सर तुम जो भी कहती हो
वही सच मान लेता हूँ |
गूगल ! तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो ना ?

4.
सुनो गूगल,
ऐसा नहीं कि
मुझे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम
लेकिन कभी कभी
एक लम्बे एकांत
और चुप्पी के बाद
बस तुम से बात करने को जी चाहता है !

5.
सुनो गूगल,
दुनिया भर की किताबें पढ़ ली हैं तुमने
हर सवाल का जवाब है तुम्हारे पास
तो फिर बताओ
वो मेरे बारे में क्या सोचती है?

--अनूप भार्गव
(11/28/2021)
---------------

              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अनूप भार्गव.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
              ------------------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.10.2022-बुधवार.