फ़ुरसतिया-साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2022, 10:05:45 PM

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Atul Kaviraje

                                      "फ़ुरसतिया"
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मित्रो,

     आज पढते है, "फ़ुरसतिया" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "साल के आखिरी माह का लेखाजोखा"

                  साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-2--
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     महीने की दूसरी उल्लेखनीय घटना रही जीतेन्द्र का बउवा पुराण.अभी जीतेन्दर ब्लागमेला से बाहर होने के सदमे से उबरे नहीं थे कि अतुल ने उनके बउवापुराण को भांग की पकौड़ी के कुल का बता दिया.उनकी छठी इंद्रिय बोली थी तब जब पोस्ट बाहर नहीं हुयी थी. उन्होंने जीतेन्दर को बताया तब जब बहुत देर हो चुकी थी.अपने को मुंहफट बताने के लिये भी उनको पत्नी का सहारा लेना पड़ा.मुझे अनायास यशपाल का लेख बीबीजी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है याद आया.

     बहरहाल जीतेन्दर ने फिर अच्छे बच्चे के तरह तड़ से माफीमांग ली.शुक्रिया अदा किया काबिल दोस्त का.वैसे मुझे जीतेन्दर से बहुत नाराजगी है.एक दिन मैंने अवस्थी को फोन किया.पूरे 168 रुपये खर्चा हुये.इसमें से 80 रुपये की बातचीत के दौरान अवस्थी मेरापन्ना का गुणगान करते रहे.इसके अलावा जीतेन्दर की उत्पादन गति इतनी महान है कि अक्सर यह खतरा मिट जाता है किचिट्ठा विश्व पर मेरा पन्ना के अलावा कुछ और दिखेगा.

     फिर कुछ दिन मूड उखड़ा रहा जीतेन्दर का.ब्लाग उत्पादन मशीन दूसरोंकी गजलें उगलती रहीं.अभी दो पोस्ट आयीं हैं .लालूजी वाली पोस्ट अगर लालूजी देख लें तो शायद बुला लें उन्हें अपना कामधाम देखने के लिये.मेरा पन्ना में टिप्पणी पता नहीं क्यों गायब हो जाती है.ई कैसा टिप्पणी इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट है भाई.दूसरी बात जो ये बिंदियां जो दो वाक्यों के बीच में रहती हैं वो लगता है कोई शाक एव्जारबर हैं रेल के दो डिब्बों (वाक्यों)के बीच में.कभी-कभी असहज लगता है.यह बात मैं खुद कह रहा हूं .मेरी पत्नी का इसमें कोई रोल नहीं है.

     अवस्थी लिखने के बारे में अपने आलस्य से कोई समझौता नहीं करते.किसी हड़बड़ी में नहीं रहते.सौ सुनार की एक लोहार की .

     कभी लेजर में बैठ के सोचो कितना ऐनसिएंट कल्चर है इंडिया का . लैंगुएज, कल्चर, रिलीजन डेवेलप होने में, इवाल्व होने में कितने थाउजेंड इयर्स लगते हैं.

     हमारे वेदाज, पुरानाज, रामायना, माहाभारता जैसे स्क्रिप्चर्स देखिये, क्रिश्ना, रामा जैसे माइथालोजिकल हीरोज को देखिये, बुद्धिज्म, जैनिज्म, सिखिज्म जैसे रिलीजन्स के प्रपोनेन्ट्स कहाँ हुए? आफ कोर्स इंडिया में.

     होली, दीवाली जैसे कितने कलरफुल फेस्टिवल्स हम सेलिब्रेट करते हैं. क्विजीन देखिये, नार्थ इंडिया से स्टार्ट कीजिये, डेकन होते हुए साउथ तक पहुँचिये, काउण्टलेस वेरायटीज. फाइन आर्ट्स ही देखिये क्लासिकल डांसेज. म्यूजिक, इंस्ट्रूमेंट्स - माइंड ब्लोइंग

     नेशनल लैंगुएज को रिच बनाने के इनके यज्ञ में सबने अपनी आहुति डाली.मैं कई बार पढ़ चुका हूं.कइयों को पढ़ा चुका हूं.एक नरेश जी तो पढ़ते-पढ़ते इतना हंसे कि लोग समझे कोई हादसा हो गया.फिर उन्होंने टिप्पणी लिखना सीखा तथा टिप्पणी लिखी.अब समय हो गया है.केजी गुरु के आशीर्वाद से आशा है जल्द ही ठेलुहा पर नयी पोस्ट अवतरित होगी.आशा है देवाशीष(जी)भी इनका समुचित प्रयोग करंगें.

     रोजनामचा में चार लेख आये.चोला बदलकर पहचान बचाने का अचूक मंत्र के बारे में ब्लागमेला में लिखा जा चुका है.प्रवासियों के पहचान के संकट पर अतुल का लेख बेहतरीन था.पर शीर्षक मुझे कुछ जमता नहीं.मुझे लगता है कि अगर हम ही अपनी अपने तुलना कुत्ते से करेंगे तो दूसरा अगर करता है तो क्या गलत करता है.भौं-भौं करने की इतनी क्या जरूरत है?हालांकि अवस्थी कह चुके हैं यह बात.इसके बाद पार्किंग की समस्या मजेदार अंदाज में लिखा अतुल ने.चौथा लेख अनुगूंज के लिये है.उधर एच ओ वी लेन में भी अमेरिकी प्रवास के रोचक किस्से जारी हैं.बहुत सिलसिलेवार अंदाजमें किस्से चल रहे हैं.वैसे मेरी अपेक्षा यह है कि हो सके तो दोनों देशो की सामाजिक स्थिति की तुलना करते रहेंगे अतुल ताकि जो इनकी आंखों से अमेरिका देख रहे हैं वे बिना टिकट अनुभव व जानकारी हासिल कर सकें.

--विजय ठाकुर
Posted by-अनूप शुक्ल
(Thursday, December 30, 2004)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फ़ुरसतिया.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.10.2022-बुधवार.