व्योम के पार-लेख-लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना-2

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2022, 09:26:46 PM

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Atul Kaviraje

                                  "व्योम के पार-लेख"
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मित्रो,

     आज पढते है, डॉ॰ जगदीश व्योम, इनके "व्योम के पार-लेख" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना"

    लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना--क्रमांक-2--
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     नारी के सतीत्व की रक्षा करना लोक-मानव अपना धर्म समझता है, नारी का `नारीत्व' ही उसमे यदि छिन जाए तो फिर समाज में उसका जीवन व्यर्थ है-

    ``अकिली आजु फँसी तबुँअन में, संकट में है धरमु हमार।''

     किसी बड़े संकट के आ जाने पर लोक-मानव देवी-दवताओं से प्रार्थना करता है। उसे विश्वास है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना को देवी-देवता अवश्य सुनते हैं और वे साक्षात् सहायता करते हैं। भले ही यह कोरा विश्वास ही क्यों न हो परन्तु मनोवैज्ञानिक रूप से लोक-मानव को इस विश्वास से बहुत सम्बल मिलता है। `ढोला' लोकगाथा का यह अंश  दृष्टव्य है-

    ढोला और करहा ने दुर्गा माँ से डोर लगाई।
    सुन भक्तन की टेर, भगवती ले जमात सँग आई।
    आइ गए भूत चुरैलें, भैरों और पिशाच
    जोगिनी खप्परु लइ के नाचि रही है नाचु।
    माँ काली कंकाली जौहरु रही दिखलाय।
    बुहत से दानी मारे, भाजे कुछ जान बचाय।।

     लोकगाथाओं में देवीपूजन के प्रसंग भरे पड़े हैं। बलि प्रथा का भी चित्रण लोकगाथाओं में मिलता है। पूजा की सामग्री, विधि विधान को लोकगाथाएँ जीवित बनाए हुए हैं-

    देवी चण्डी के पूजन हित सब सामान लियौ मँगवाय।
    पान, फूल और अक्षत मेवा सोने थाल लए भरवाय।
    ध्वजा नारियल और मिठाई, फूलन हार करे तैयार।
    निम्बू, खप्परु, बकरा, मेढ़ा लइके ज्वालासिंह सरदार।।

     लोक-मानव का यह सहज विश्वास है कि देवी के प्रसन्न होने पर उसका कार्य सफल हो जाएगा। इसी विश्वास को पुष्ट करने के लिए वह पूजा विधान करता है। युद्ध भूमि या किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाने वाले वीरों के माथे पर मंगल कामना के लिए टीका और विजय की कामना के लिए भुजा पूजी जाती है-

    रुचना करिके तब आल्हा को, भुजबल पूजे मल्हन्दे आइ।
    भुजा पूजि दई नर मलिखे की, दओ माथे पर तिलक लगाइ।।

     संध्या आरती के लिए चोमुखा दीपक जलाना, लोक संस्कृति है। लोकगाथाओं में इसका चित्रण मिलता है-

    आरति लइ के कर सोने की, वामे चामुख दिअना वारि।
    ले के चलि भई मल्हना रानी, औ द्वारे पइ पहुँची जाइ।।

     बड़ों का सम्मान करना लोकधर्म है-

     पायँ लागि के रानि मल्हना के, कर को कंकन धरो उतारि।

     पतिव्रता नारी के प्रति लोक-मानव स्म्मान दृष्टि रखता है-

     पतिव्रता जो चाहे मन में, पल में परलय देय मचाय।

     प्रकृति पूजा में लोक-मानव का अगाध विश्वास है-

     पहिलो गिरासु दओ धरती कउ, दूजो गऊ चढ़ाओ।

--डॉ॰ जगदीश व्योम
(THURSDAY, SEPTEMBER 15, 2022)
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           (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-जगदीश व्योम लेख.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.10.2022-गुरुवार.