व्योम के पार-लेख-लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना-3

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2022, 09:29:38 PM

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Atul Kaviraje

                                  "व्योम के पार-लेख"
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मित्रो,

     आज पढते है, डॉ॰ जगदीश व्योम, इनके "व्योम के पार-लेख" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना"

    लोकगाथाओं में सांस्कृतिक चेतना-लोकगीतों में सांस्कृतिक चेतना--क्रमांक-3--
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     पुनर्जन्म में लोक-मानव का विश्वास है यह उसे कर्तव्य पथ पर मर्यादित होकर चलने को बाध्य करता है। परलोक का ध्यान उसे बना रहता है, इस भय से वह अपने मानव-धर्म का पालन करता है-

    हइ ये लीला नारायन की, आवागमन सदा व्यवहार।
    मरि के जनमइ फिरि मरि जाबइ आबइ लउटि फेरि संसार।।

     लोकगाथाएँ लोक-मानस में यहीं संसार उद्भूत करती रहती हैं कि भले ही सब कुछ विपरीत होने लगे पर मानव को अपना धर्म कदापि नहीं छोड़ना चाहिए-

    ब्रह्मा सृष्टि रचानो छोड़ें शिवजी छोड़ देइ संहार।
    धर्म कर्म अरु क्षत्रीपन कौ, तबहुँ न जागन सकै बिसार।।

     लोक मानव का विश्वास है कि यदि व्यक्ति अकेले में भी पाप-कर्म करता है तो भी वह छिपा नहीं रहता, वह प्रकट हो ही जाता है-

    पाप छिपाये सइ ना छिपिहै, चढ़ि के मगरी पइ चिल्लाय।

     किसी के घर का नमक खा लेने का अर्थ है कि उसके साथ कभी धोखा न करना। यही हमारी लोक-संस्कृति है-

    मालुम नोनु परो पीछे सइ तब सब कहन लगे सकुचाय।
    नमक बनाफर को खायो है सो देही में गयो समाय।।
    इनसै दूजो नेक जो करिहों, परिहों नरक कुण्ड में जाय।

     लोक जीवन में लोक संस्कृति का पूर्ण निर्वाह लोक-मानव करता है। लोक-मानस में जहाँ यह संस्कार समाया हुआ है कि दैवीय शक्ति सब अच्छा ही करती है, इसलिए वह जो कुछ करे सब ठीक ही होगा। वहीं यह संस्कार भी छिपा पड़ा है कि यदि दैवीय शक्ति पक्षपात करती है, अनीति पूर्ण कार्य करती है, बुरे लोगों का साथ दे रही है, तो वह उस आद्यशक्ति से भी दो-दो हाथ करने का हौसला रखता है। असत्य के लिए वह काल से भी लड़ जाता है। एक ऐसा ही चित्रण देखिए-

    धमक दई चण्डी के ऊपर जाने बड़े जोर से साँग,
    चंडी गई पाताल समाय।
    मंदिर की ढोला नैं दीनीं तब ईंट सों ईंट बजाय।।

     ऐसी देवी और ऐसा मंदिर जहाँ अन्याय और अधर्म का कार्य होता हो तथा गलत उद्देश्य की पूर्ति हेतु जिसका प्रयोग किया जाता हो लोकमानस ऐसे देव मठ को तहस-नहस करने में थोड़ा भी संकोच नहीं करता। कितने व्यावहारिक उद्देश्य एवं भावनाएँ निहित हैं लोकगाथाओं में समाहित लोक संस्कृति में। लोक-संस्कृति में भारतीय संस्कृति के सभी प्रमुख तत्व समाहित हैं। आध्यात्मवादी दृष्टिकोण, बहुदेव वाद, समन्वय वाद, सेवा भाव, सम्मान का भाव, पवित्रता, अनेकता में एकता, विश्वास सहनशीलता, नारी सम्मान, ईश्वर पर विश्वास, अतिथि सेवा, शरणागत की रक्षा, व्रत व नियम पालन, अहिंसावादी दृष्टिकोण आदि समस्त भावनाएँ लोक गाथाओं में उभर कर सामने आती हैं। लोकगाथाएँ ही भारतीय संस्कृति को कालजयी बनाए हुए हैं। सांस्कृतिक चेतना का निर्मल स्वरूप लोक गाथाओं में ही देखने को मिलता है।

--डॉ॰ जगदीश व्योम
(THURSDAY, SEPTEMBER 15, 2022)
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           (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-जगदीश व्योम लेख.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.10.2022-गुरुवार.