मधुर गुँजन-कविता-महादान

Started by Atul Kaviraje, October 09, 2022, 09:55:42 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मधुर गुँजन"
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मित्रो,

     आज पढते है, ऋता शेखर 'मधु', इनके "मधुर गुँजन" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविताका शीर्षक है- "महादान"

                                        महादान--
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नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
सुस्वागतम्

नया साल उत्साह नव, आया सबके पास |
कुछ तो नव कर लीजिए, बन जाए यह खास ||

महादान
रखना था वचन का मान
दिव्य उपहार कवच कुण्डल का
कर्ण ने दे दिया दान |

लोक हित का रखा ध्यान
दधिची ने दिया अस्थि दान
शस्त्र का हुआ निर्माण
हरे गए असुरों के प्राण |

अनोखे दान को मिला स्थान |
दान कार्य जग में बना महान ||

विद्यादान वही करते
जो होते स्वयं विद्वान,
धनदान वही करते
जो होते हैं धनवान,
कन्यादान वही करते
जिनकी होती कन्या सन्तान,
रक्तदान सभी कर सकते
क्योंकि सब होते रक्तवान |

रक्त नहीं होता
शिक्षित या अशिक्षत
अपराधी या शरीफ़
अमीर या गरीब
हिन्दू या ईसाई |
यह सिर्फ़ जीवन धारा है,
दान से बनता किसी का सहारा है |

रक्त कणों का जीवन विस्तार           
है सिर्फ़ तीन महीनों का |
क्यों न उसको दान करें हम
पाएं आशीष जरुरतमन्दों का |

करोड़ों बूँद रक्त से
निकल जाए गर चन्द बूँद,
हमारा कुछ नहीं घटेगा
किसी का जीवन वर्ष बढ़ेगा |
                   
मृत्यु बाद आँखें हमारी
खा़क में मिल जाएंगी,
दृष्टिहीनों को दान दिया
उनकी दुनिया रंगीन हो जाएगी |

रक्तदान सा महादान कर
जीते जी पुण्य कमाओ
नेत्र-सा अमूल्य अंग दान कर
मरणोपरांत दृष्टि दे जाओ |
                         
रक्तदान के समान नहीं
है कोई दूजा दान,
नेत्रदान के समान
है नहीं दूजा कार्य प्रधान |

--ऋता शेखर 'मधु'
(शनिवार, 31 दिसंबर 2011)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अब छोड़ो भी.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.10.2022-रविवार.