ज़माने की रफ़्तार-विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-१-अ

Started by Atul Kaviraje, October 16, 2022, 10:33:05 PM

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Atul Kaviraje

                                   "ज़माने की रफ़्तार"
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मित्रो,

     आज पढते है, गोपाल प्रधान, इनके "ज़माने की रफ़्तार" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "विश्वविद्यालय और मणिपुर"

                          विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-१--
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     सिलचर स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में मुझे नौकरी मिली थी । हालात बदल गये सेवा शर्तें बदल गयीं लेकिन मूल को याद दिलाते हुए यह शब्द नौकरी आज भी चल रहा है । बांगला में इसे थोड़ा ही बदलकर चाकरी बोलते हैं । भारत सरकार ने इस क्षेत्र को फ़ौज की स्टिक के साथ केंद्रीय विश्वविद्यालयों का कैरट भी दिया है । यह तो स्वतंत्र शोध का विषय है कि इन विश्वविद्यालयों में केंद्रीय क्या है । अध्ययन और अध्यापन के क्रम में इतने केंद्रीय विश्वविद्यालय देख चुका कि बस अब दक्षिण भारत के किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में पहुँच जायें तो सकल भारत भाँय भाँय का दर्शन पूरा हो जाए ।

     जहाँ भ्रष्टाचार की गंगा बहती है और हरेक रसूखवाला आदमी इसमें गले गले डूबा रहता है वहाँ की किसी भी संस्था में काम करना त्रासद होता है । इस विश्वविद्यालय में भी जितना पैसे लगे होने का पता चला उतने की चीजें दिखाई नहीं पड़ती थीं । ऐसे में शायद उत्तर पूर्व के इन सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने अकादमिक गुणवत्ता के साथ समझौता कर लिया है । लाल बहादुर वर्मा के उपन्यास उत्तर पूर्व को पढ़कर इसकी पुष्टि हुई । विद्यार्थियों को जैसे तैसे पास कराना ही इनका दायित्व है । हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों की दुर्गति के बारे में हम बता चुके हैं । अतिरिक्त बात यह है कि शेष भारत के इतिहास के साथ इस क्षेत्र के इतिहास की संगति न होने के कारण इतिहास यहाँ तक कि साहित्य के इतिहास की भी धारणा ही नहीं बन पाती । अब शिक्षा की बात आई तो कुछ और विसंगतियों की चर्चा लाजिमी है । मणिपुरी भाषा बांगला लिपि में लिखी जाती है । उत्तर भारत की किसी भाषा के साथ करें तो ऐसा आप । दशकों से लोग उर्दू को नागरी लिपि में लिखने की वकालत कर रहे हैं । लिपि केवल भाषा की सुविधा नहीं है । वैसे ही जैसे शरीर आत्मा का वस्त्र होने के बावजूद आत्मा को अप्रभावित नहीं छोड़ता । वस्त्र भी महज परिधान नहीं होता ।

     वहाँ मनोरमा देवी की हत्या के खिलाफ़ हुए आंदोलन से पहले भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा सभी नागावासी इलाकों को मिलाकर वृहत्तर नागालिम बनाने की आशंका के खिलाफ़ आंदोलन में विधानसभा फूँक दी गयी थी । फिर आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें दुनिया में पहली बार ढेर सारी स्त्रियों ने फ़ौजी छावनी के समने नग्न प्रदर्शन किया । मेरे सिलचर आने के बाद लिपि परिवर्तन आंदोलन तेजी पर रहा । एक के बाद एक आंदोलनों ने भारत के स्विट्जरलैंड को रहने लायक ही नहीं छोड़ा है । खामोशी से लोग प्रदेश छोड़कर भाग रहे हैं । यही इस इलाके में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । लोगों का एक जगह से दूसरी जगह जाना । इसके कारण हरेक प्रांत में आबादी का अनुपात गड़बड़ाता रहता है और मानवशास्त्रियों को विभिन्न जनजातियों की रिहायश तय करने में मुश्किल होती है । बहरहाल लिपि परिवर्तन आंदोलन से मणिपुरी समाज की कुछ दिक्कतों का पता चलता है ।

--गोपाल प्रधान
(Wednesday, December 22, 2010)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गोपाल प्रधान.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.10.2022-रविवार.