ज़माने की रफ़्तार-विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-१-ब

Started by Atul Kaviraje, October 16, 2022, 10:35:01 PM

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Atul Kaviraje

                                   "ज़माने की रफ़्तार"
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मित्रो,

     आज पढते है, गोपाल प्रधान, इनके "ज़माने की रफ़्तार" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "विश्वविद्यालय और मणिपुर"

                          विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-१--
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     मणिपुरी समाज असम के बाद सर्वाधिक हिंदूकृत समाज है । यन्न भारते तन्न भारते के मुताबिक अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा मणिपुर की ही थी । इसी कारण अधिकांश मणिपुरी लोगों को आप अपने को क्षत्रिय मानकर सिंह पदनाम का प्रयोग करते देखेंगे । लेकिन यह जुड़ाव ज्यादा गहरा हुआ चैतन्य महाप्रभु के कारण । भक्ति आंदोलन ने भी कैसे कैसे लोगों को जन्म दिया । न्याय के चूड़ांत विद्वान चैतन्य जब भक्त हुए तो उनका प्रभाव बंगाल और उड़ीसा के साथ मणिपुर पर भी पड़ा । उनके प्रभाव से कुछ मणिपुरी लोगों ने अपना परंपरागत सनामही धर्म छोड़कर वैष्णव धर्म अपनाया और ये लोग मैतेयी कहलाये । लेकिन जातिप्रथा के बगैर हिंदू धर्म कैसा ! अतः हिंदुओं ने इन्हें कभी हिंदू नहीं माना । जब लोगों ने मणिपुरी भाषा के लिये मैतेयी लिपि की माँग की तो इसे हिंदू होने से पहले की परंपराओं की वापसी के रूप में भी समझा गया । मैतेयी लिपि क प्रयोग बंद हुए दो ढाई सौ साल गुजर चुके हैं । इसी नाम पर सरकार ने ऐसा करने में अपनी अक्षमता जाहिर की । एक और वजह थी । इंफाल घाटी मैतेयी बहुल है लेकिन पहाड़ों में रहनेवाले आदिवासी ज्यादातर इसाई हैं । उन्हें भी इस संबंध में आपत्ति थी ।

     भक्तिकाल की यह दुविधा स्वतंत्रता के समय घटी घटनाओं से और बढ़ी । मणिपुर अंग्रेजी शासन के अधीन नहीं था । यहाँ राजा का शासन था । इस अतीत की स्मृति आज भी मणिपुरी लोगों के नाम में सुरक्षित है। अधिकांश मैतेयी लोगों के नाम से पहले एम के या आर के लिखा रहता है । एम के का अर्थ महाराजकुमार है । ये लोग अपने आपको राजा के नजदीकी वंशज बताते हैं । आर के का अर्थ राजकुमार है । ये लोग राजपरिवार के रिश्तेदारों के वंशज माने जाते हैं । इन्हीं सम्मानित लोगों में से एक इराबट सिंह थे । उन्होंने कुलीनता त्यागकर मणिपुर में वामपंथी आंदोलन की नींव डाली । आज भी मणिपुर में भाकपा के अनेक विधायक हैं । इराबट सिंह ने तेभागा और तेलंगाना की तर्ज पर किसानों और महिलाओं के संगठन बनाये । इराबट सिंह के नेतृत्व में जनता ने भारत की स्वतंत्रता से पहले ही अर्थात 1946 में ही राजा के शासन का अंत कर दिया था और समस्त शक्तियाँ जनता द्वारा स्थापित पीपुल्स असेंबली को प्रदान कर दी गयी थीं । लेकिन भारत सरकार ने 1949 में मणिपुर के भारत में विलय संबंधी कागजात पर दस्तखत राजा सेकरवाये । वह भी उसे शिलांग में कैद रखकर और जबर्दस्ती । राजा को किसी अन्य मुद्दे पर बात करने के शिलांग बुलाया गया था । उससे विलय के कागजात पर दस्तखत करने के लिये कहा गया । उसने पीपुल्स असेंबली की राय लेने के लिये मणिपुर वापस जाने देने की अनुमति माँगी । इसकी इजाजत नहीं दी गयी और दस्तखत कर लेने के बाद ही इंफाल लौटने दिया गया । इस घटना ने मणिपुरी जनमानस में गहरी दरार डाल दी । कभी भी मणिपुर इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सका । इसीलिये आज भी वहाँ शेष राष्ट्र के साथ एकीकरण किंतु अपनी जड़ों की ओर वापसी के बीच कशमकश जारी रहती है ।

--गोपाल प्रधान
(Wednesday, December 22, 2010)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गोपाल प्रधान.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.10.2022-रविवार.