ज़माने की रफ़्तार-विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, October 16, 2022, 10:36:34 PM

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Atul Kaviraje

                                   "ज़माने की रफ़्तार"
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मित्रो,

     आज पढते है, गोपाल प्रधान, इनके "ज़माने की रफ़्तार" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "विश्वविद्यालय और मणिपुर"

                          विश्वविद्यालय और मणिपुर--क्रमांक-2--
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     मणिपुर के पितृसत्ताक समाज में भी महिलाओं की इतनी जबर्दस्त उपस्थिति के पीछे इराबट सिंह के योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता । मणिपुर का इमा बाजार दुनिया का संभवतः एकमात्र ऐसा बाजार है जो सिर्फ़ महिलाओं का है । मनोरमा देवी वाले आंदोलन में महिलाओं की ताकत पूरी दुनिया ने देखी । मेघालय तो खैर मातृसत्तात्मक तीन जनजातियों का प्रदेश है ही (गारो, खासी और जयंतिया) लेकिन इसके अलावा भी सभी प्रदेशों के सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की उपस्थिति से महानगरीय एन जी ओ आधारित प्रयास रश्क कर सकते हैं । एक दिन सुबह टहलते हुए हमने सैनिकों को अनेक गाड़ियों में भरकर मणिपुर की ओर जाते देखा । दूसरे दिन अखबार में पढ़ा कि महिला होमगार्डों के एक प्रदर्शन से यह घबराहट फैली थी ।

     हरेक प्रांत के साथ सरकार ने कुछ ऐसा किया है कि केंद्र की पहल पर स्थापित किसी चीज को लोग अपना नहीं पाते । लिपि परिवर्तन आंदोलन में मणिपुर का सबसे पुराना और बेशकीमती पुस्तकालय फूँक दिया गया जिसमें मणिपुर के इतिहास में रुचि रखनेवालों के लिये अपार शोध सामग्री रखी हुई थी लेकिन आम लोगों में उदासीनता ही छाई रही । बाद में सरकार ने लिपि परिवर्तन की माँग मान ली लेकिन इसे सरकार की आपराधि निष्क्रियता कहें या मणिपुर का दुर्भाग्य कि जिस फ़ैसले का होना तय था उसके लिये वहाँ के अपूर्व पुस्तकालय का नाश हुआ । अब भी मणिपुर में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं । सरकार के मंत्री महज अपनी सुरक्षा के लिये चिंतित रहते हैं और सामान्य लोग किसी न किसी आतंकवादी गुट आये दिन पैदा की जानेवाली परेशानियों से निपटने के लिये स्वतंत्र ।

     लिपि परिवर्तन आंदोलन के दौरान अन्यथा वामपंथ विरोधी अखबार टेलीग्राफ़ ने अच्छा संपादकीय लिखा । उसने लिखा कि जब पूर्वोत्तर की भाषायें विकसित नहीं थीं तब बांगला ने संपर्क की भूमिका निभाई । लेकिन फिर त्रिपुरा में वामपंथ की सरकार ने ही त्रिपुरी भाषा और लिपि का पुनरुत्थान किया और उसे माध्यम की भाषा के रूप में स्थापित किया । मणिपुर में भी यह किया जा सकता है । बहरहाल इराबट सिंह की मृत्यु के बाद कम्युनिस्ट आंदोलन की दूसरी उठान अर्थात नक्सलबाड़ी के साथ एन विशेश्वर सिंह के नेतृत्व में पी एल ए का उभार हुआ । विशेश्वर सिंह बाद में विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते । उसके बाद भी पी एल ए का हथियारबंद संघर्ष जारी रहा । पी एल ए से पैदा हुई कांगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी लिपि परिवर्तन आंदोलन में मजबूती से लगी रही । इस तरह कम्युनिस्ट आंदोलन की तीनों धारायें मणिपुर में मौजूद हैं । भाकपा तो कांग्रेस सरकार का घटक ही है ।

     समय समय पर नागा विद्रोही, मणिपुर के भूमिगत वामपंथी और मिजो आंदोलन के विद्रोही तत्व मोर्चा बनाने की कोशिश करते रहते हैं । अस्सी के दशक में उल्फा के उदय और उसके पतन के बाद उत्तर पूर्व के ऐसे भूमिगत विद्रोहियों के भीतर भारी परिवर्तन आया । अब विचारधारा वगैरह गौण हो गये हैं और वसूली, नशा, हथियार तथा फिरौती ने इन संगठनों को खोखला कर दिया है । एक अध्ययन के मुताबिक उल्फा और एन एस सी एन जैसे संगठनों का बजट राज्य सरकारों के बजट से बृहदाकार हो चला है । तस्करी, हथियारों के व्यापार और अपहरण के जरिये वसूली का ऐसा तंत्र खड़ा हो गया है कि उल्फा का बजट असम सरकार से बड़ा हो गया है । पिछले दिनों दक्षिण एशियाई मुद्रा अवमूल्यन में एन एस सी एन का ही सबसे ज्यादा पैसा डूबा । सरकारी कार्यालयों से वसूली इन संगठनों को भीतर तक चाट गयी है । अब तो कई संगठन अफीम की तस्करी से भी पैसा बनाने लगे हैं । मणिपुर में अनेक विधायक और सांसद अपनी जीत के लिये इन आतंकवादी संगठनों पर आश्रित हैं । इसलिये विधायक बनने के बाद इनकी मजबूरी हो जाती है इन संगठनों के इशारे पर चलना । उल्फा का एक आलीशान होटल बांगलादेश में है । सामान्य जनसमुदाय की कभी कोई सहानुभूति इन संगठनों के साथ रही भी हो तो अब नहीं है । अब ये संगठन सरकार के साथ वार्ता के जरिये चल रहे हैं ।

--गोपाल प्रधान
(Wednesday, December 22, 2010)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गोपाल प्रधान.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.10.2022-रविवार.