मेरी कहानियां-शिखा कौशिक-बचपना-एक लघु कथा

Started by Atul Kaviraje, October 22, 2022, 10:48:37 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी कहानियां"
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मित्रो,

     आज पढते है, शिखा कौशिक, इनके "मेरी कहानियां" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "बचपना-एक लघु कथा"

                                  बचपना-एक लघु कथा--
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     एक वर्ष हो गया सुभावना के विवाह को ,मेरी पक्की सहेली . बचपन से दोनों साथ -साथ स्कूल जाते ,हँसते ,खेलते पढ़ते .कभी मेरे नंबर ज्यादा आते कभी उसके लेकिन दोनों को एक दूसरे के नंबर ज्यादा आने पर बहुत ख़ुशी होती .एक बार मैं तबियत ख़राब होने के कारण स्कूल नहीं जा पाई तब सुभावना ही रोज मेरे घर आकर मेरा काम किया करती थी ।हमारे मम्मी पापा की भी अच्छी बनती थी ।जब भी हमारे मम्मी -पापा बाहर जाते हम बिना किसी संकोच के एक दूसरे के घर रह लेते थे .सुभावना के दो छोटी बहने और थी इसलिए उसके मम्मी पापा चाहते थे कि अच्छा घर मिलते ही उसके हाथ पीले कर दे .यद्यपि मैं सुभावना से अलग होने की सोचकर भी घबरा जाती थी ,लेकिन उसके मम्मी पापा की चिंता भी देखी  नहीं जाती थी.मम्मी इस बार नैनीताल गयी तो लौटकर आते ही मेरे साथ सुभावना के घर गयी । मम्मी ने उसके मम्मी पापा को एक तस्वीर दिखाई और बोली ''ये लड़का दुकानदार है ,अच्छी इनकम हो जाती है ,सुभावना से कुछ साल बड़ा है पर शादी करना चाहे तो कर दे....लड़का शरीफ है . उसके मम्मी पापा को लड़का पसंद आ गया और जब हमारे इंटर के पेपर हो गए तब जून माह में सुभावना का विवाह हो गया .उसकी विदाई पर मैं और वो गले लगकर खूब रूए .पिछले माह उसकी मम्मी हमारे यहाँ आई .मिठाई का डिब्बा उनके हाथ में था .वे बोली ''सुभावना के बेटा हुआ है ''..यह खबर पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे.उन्होंने बताया कि सुभावना एक माह बाद यहाँ आएगी .मेरी बी. ए . प्रथम वर्ष की  परीक्षाएँ  भी पूरी होने आ गयी थी .मैं बेसब्री से उसके आने का इन्तजार करने लगी .कल उसकी छोटी बहन हमारे घर आकर बता गयी कि ''सुभावना आ गयी है ''मेरा मन था कि अभी चली जाऊ पर मम्मी ने कहा कि कल को चलेंगें  .आज  जब सुभावना के घर पहुची तब उसे पहचान नहीं पाई .कितनी अस्त-व्यस्त सी लग रही थी .करीब एक घंटे तक बस ससुराल की बुराई करती रही .मम्मी के कहते ही कि ''चल'मैं तुरंत चल पड़ी वर्ना एक एक मिनट कहकर मैं एक घंटा लगा देती थी .उसके घर से लौटते समय मैं समझ चुकी थी कि सुभावना का बचपना खो चुका  है और वो भी जिन्दगी को समझने लगी है .

--प्रस्तुतकर्ता-शिखा कौशिक
(मंगलवार, 7 दिसंबर 2010)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-शिखा पी.कौशिक.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.10.2022-शनिवार.