हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-57-एक डोली चली एक अर्थी चली

Started by Atul Kaviraje, October 25, 2022, 09:33:29 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-57
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-57. इस कविता का शीर्षक है- "एक डोली चली एक अर्थी चली"

(Best Hindi Poetry – एक डोली चली एक अर्थी चली)
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                              "एक डोली चली एक अर्थी चली"
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एक डोली चली एक अर्थी चली......
बात दोनों में कुछ इस तरह से चली ,
बोली डोली तुम्हे किसने धोका दिया,
कहाँ तू चली...??
अर्थी बोली.......
चार तुझमे लगे, चार मुझमे लगे (कंधे)
फुल तुझपे सजे, फुल मुझपे सजे,
फर्क इतना ही है अब सुन ले सखी,
तू पिया को चली मै प्रभु को चली..
मांग तेरी भरी, मांग मेरी भरी,
चूड़ी तेरी हरी, चूड़ी मेरी हरी,
फर्क इतना ही है अब सुन ले सखी..
तू जहाँ में चली, मै जहाँ से चली......
एक सजन तेरा खुश हो जायेगा,
एक सजन मेरा मुझको रो जायेगा,
फर्क इतना ही है अब सुन ले सखी,,
तू विदा हो चली
मै अलविदा हो चली.....

--AUTHOR UNKNOWN
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.10.2022-मंगळवार.