पारिजात की छाँव-एक जीवन पारिजात सा-पल-पल सुगन्धित कर रहा !!!!--क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, October 31, 2022, 10:29:51 PM

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Atul Kaviraje

                                 "पारिजात की छाँव"
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मित्रो,

     आज पढते है, "पारिजात की छाँव" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "एक जीवन पारिजात सा-पल-पल सुगन्धित कर रहा !!!!"

         एक जीवन पारिजात सा-पल-पल सुगन्धित कर रहा !!!!--क्रमांक-१--
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     ये लेख ,मेरे ब्लॉग "पारिजात की छांव " का पहला लेख है चाह  रही थी कि फूलों सा हल्का रहे ,कोशिश की है कैसी रही ,बताइएगा जरूर | मेरा और पारिजात का क्या और कैसा संबंध है ये भी बताया है मैंने इसमें, इसका नाम "पारिजात की छांव" ही क्यों रखा मैंने। इस सब का विवरण भी दिया है। पारिजात कैसा होता है और उसके जैसे स्वभाव के लोग कैसे होते हैं उसकी भी चर्चा की है इसमें मैंने।

     👉ऐसे तो बचपन से ही मैं ,प्राकृतिक वातावरण में रहती आई हूँ हमारे घर के ठीक सामने ही डिग्री कॉलेज था जहां हमारे सारे खेल होते थे ,वहां का माली नेपाली था - जिसे हम " काँचा " कहते थे काँचा का अर्थ जानने के लिए आप ,हरे रामा हरे कृष्णा फिल्म ,का देवानंद और मुमताज पर फिल्माया गया गाना -काँची रे काँची रे ..................से समझ सकते हैं।

        जब हम ज्यादा शैतानियाँ देते थे तो डांट खाते थे नहीं तो मस्त हो कर खेलते थे ,वहां हमारा एकछत्र राज चलता था। एक सख्त-संजीदा और कर्तव्य परायण शिक्षक की बेटी जो हूं। वहां के रंगीन चौक की रंगत अबतक मेरे दिल-दिमाग की आँखों से नहीं गई है। कांचा जब तक सारे कमरों का ताला ना लगा लेता तब तक हम एक के बाद दूसरे कमरे में और दूसरे से तीसरे में अपनी सल्तनत बसाए बैठे होते थे। तो बहुत तरह के फूल पौधे देखे हैं ,हर पौधे -फूल को छूने -सूंघने और चख के देखने की,आज किसी नए स्वाद वाली चॉकलेट को खाने की तीव्र इच्छा जैसी रहती थी। एक घास जो कुछ -कुछ गाजर के पौधे जैसी होती थी उसको मिर्च का पौधा कहते थे बहुत ही तीखा और उतनी ही तीखी उसकी गंध थी। गुलमोहर के फूल की खट्टी -मीठी कलियाँ ,अमरुद की नरम पत्तियां अभी भी याद हैं मुझे ,ज्यादातर मम्मी हमलोगो को रविवार को हरी मेंहदी की पत्तियां लेन को भेज देतीं और हम लड़कियां बंद गेट पर चढ़ कर कॉलेज के परिसर में पहुंच जाते और ढेर सारी पत्तियां तोड़ लाते फिर मम्मी समय मिलते ही उन्हें सिल पर पीस कर अपने हाथ पैरों में लगाती साथ ही मेरी भी हथेलियां और एड़ियां रंग देतीं और न जाने क्या -क्या !

            उसके कुछ सालों बाद हम दूसरे घर में सिफ्ट हुये  वहां भी और पेड़-पौधों के साथ ही " पारिजात " का पेड़ भी था , जिसकी सुगंध  तो हमारे घर तक नहीं आती थी ,पर जब मैने पहली बार -सितंबर से अक्टूबर में खिलने वाले इन फूलों को देखा तो लगा ! " जैसे खुद पेड़ ने अपने चारों ओर ,किसी कोमल मन के लिये सफेद-नारंगी सुगंधित चादर बिछा रखी हो " , फिर और भी अच्छा लगा जब 8th - 12th तक जिस स्कूल में मैने पढ़ा ,वहां भी पारिजात का पेड़ था ! जिसका मैने 12th तक खूब आनन्द उठाया। मेरी सहपाठी मुझे स्कूल के समय से थोड़ा पहले ही जबरदस्ती सिर्फ इसलिए ले जाती कि एक बार पारिजात के नीचे वो खड़ी होगी और एक बार मैं और बारी -बारी से एकदूसरे के ऊपर फूल गिराएंगे पेड़ हिलाकर।

     वो मुझसे थोड़ी काम संजीदा थी। सच उसमें कैसा सुख था आज भी शब्दों में बताना बड़ा ही कठिन है।

       आप सोच रहे होंगे मैं आपको " पारिजात" की कहानी क्यों सुना रही हूँ ? यहाँ भी हमारे घर से सटा हुआ ही एक परिजात का पेड़  है,जिसकी सुगंध  हमारे घर में खूब आई रहती है। हमारे यहाँ के बगीचे में भी दो पेड़ है पर बहुत ज्यादा बड़े नहीं हैं ,हाँ एक दिन में एक अंजुरी भर फूल निकल ही आते हैं आज भी।अब काफी बड़ा हो गया है पेड़ एक साल में और फूल भी आना शुरू हो गए हैं।

--पारिजात की छाँव
(THURSDAY, 24 SEPTEMBER 2020)
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    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-itsawonderfulworldimagine.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-31.10.2022-सोमवार.