साहित्यशिल्पी-खुलने लगे स्कूल, हो न जाये भूल [आलेख]-ब

Started by Atul Kaviraje, November 01, 2022, 08:55:58 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "खुलने लगे स्कूल, हो न जाये भूल [आलेख]" 

                     खुलने लगे स्कूल, हो न जाये भूल [आलेख] –
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     अब जब छात्र और शिक्षक स्कूल लौटते हैं तो उनकी अधूरी शिक्षा के साथ स्कूल समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान देने के लिए तैयार होना होगा। ये एक अलग तरह की चुनौती होगी. साफ़-सफाई के साथ उनके लर्निंग गैप को रोटेशन के साथ पूरा करना बहुत बड़ी चुनौती होगी. छात्रों के पास चार माह का समय है। इस वर्ष बदले पैटर्न में परीक्षाएं होंगी क्योंकि दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के लिए 30 फीसदी सिलेबस कम किया गया है। घटाए गए सिलेबस पर ही बोर्ड की परीक्षाएं ली जाएंगी। अभिभावकों की चिंता यह भी है कि इन परीक्षाओं से पहले अलग-अलग शिक्षा बोर्डों से जुड़े स्कूल प्री बोर्ड परीक्षाएं लेने की तैयारी कर रहे हैं। प्री बोर्ड परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाएंगी। स्कूल वालों का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षाएं कराने से बच्चों की गलती पकड़ कर ठीक कर लिया जाएगा। इससे बच्चों की क्षमता का पता चलेगा।

     अभिभावकों को इस समय बच्चों को केवल स्कूली परीक्षा के लिए तैयारी करने में भरपूर सहयोग तो देना ही चाहिए, साथ ही जीवन की चुनौतियों का सामना करने की सीख भी देनी चाहिए। दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होती हैं। ये परीक्षाएं छात्रों का भविष्य तय करती हैं। किसी ने क्षेत्र में आगे बढ़ना है, ये परीक्षाएं ही तय करती हैं। बिना परीक्षा के छात्रों को पास करना उनके भविष्य से खिलवाड़ होता। बिना परीक्षा कॉलेजों और स्कूलों की बड़ी कक्षाओं के छात्रों को 'कोरोना सर्टिफिकेट' देना कोई बेहतर कदम नहीं है। कोरोना काल में वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को भी शिक्षा की महत्वपूर्ण कड़ी बना दिया है लेकिन हमने ये भी जाना कि देश में एक बड़े वर्ग के पास न तो स्मार्ट फोन है और न ही कम्प्यूटर और न ही इंटरनेट की सुविधा। जिस से हमें ये पता चला कि संकट की घड़ी में ऑनलाइन शिक्षा सही है लेकिन इसे परम्परागत ज्ञान की कक्षाओं का विकल्प नहीं बनाया जा सकता। हमें स्कूलों को आखिर खोलना ही होगा वरना पहले से ही चल रहा शिक्षा असमानता कि खाई और बढ़ जाएगी।

     दुनिया भर के आंकड़े देखे तो बच्चों और किशोरों में 9 में से 1 में कोविद -19 संक्रमण की सूचना है। ये संख्या इस मिथक को तोड़ती है कि बच्चे इस बीमारी से बमुश्किल प्रभावित होते हैं, जो कि महामारी के रूप में प्रचलित है। लेकिन प्रमुख सेवाओं में रुकावट और गरीबी की दर बढ़ जाना बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है और संकट लंबे समय तक बना रहता है तो इसका गहरा असर बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और भलाई पर पड़ता है। इस दौरान बच्चों की कमजोरियां बढ़ गई, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुई और स्कूल बंद रहे, जिससे वंचित बच्चों के लिए स्कूलों में बच्चों को मुफ्त मिड-डे मील दिया जाता है. खुलते स्कूलों से अब ऐसा भी ऐसा भी हो सकता है कि स्कूल सामुदायिक प्रसारण के मुख्य चालक न बने और बच्चों को स्कूल के अंदर अच्छा वातावरण मिले जिससे ये कोरोना के प्रभाव से बच सके और पढाई भी कर सके। फिर भी हमें पूरी एहतियात रखनी होगी ताकि स्कूल खुलने ले साथ-साथ हम कोई बड़ी भूल न कर बैठे।

– प्रियंका सौरभ
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.11.2022-मंगळवार.