साहित्यशिल्पी-ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रैड लाइट की जरूरत है-2

Started by Atul Kaviraje, November 03, 2022, 09:09:09 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रैड लाइट की जरूरत है [समसामयिक]"-क्रमांक-2-- 

ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रैड लाइट की जरूरत है [समसामयिक] – -----------------------------------------------------------------------

     वेंकैया नायडू ने तकनीक आधारित सोशल मीडिया दिग्गजों और राजस्व उत्पन्न करने के लिए संघर्ष कर रहे पारंपरिक मीडिया के बीच एक राजस्व साझाकरण मॉडल को कारगर बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालांकि पारंपरिक प्रिंट मीडिया ईमानदारी से ऑनलाइन होकर तकनीकी व्यवधान को अपना रहा है, यह एक व्यवहार्य राजस्व मॉडल के साथ आने के लिए संघर्ष कर रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ देश प्रिंट मीडिया के लिए सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं । नायडू ने जोर देकर कहा कि हमें इस समस्या पर भी गंभीरता से विचार करने और प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों के साथ सहमति बनाने की जरूरत है ताकि प्रिंट मीडिया को प्रौद्योगिकी दिग्गजों के बड़े राजस्व से अपना हिस्सा मिल सके।

     सच में फ़ेक न्यूज़ मुक्त भाषण देश के नागरिकों की पसंद को प्रभावित करता है? मुख्य रूप से मीडिया कवरेज को एक संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण पर प्रहार करना पड़ता है। मगर फेक न्यूज असत्य सूचना है जिसे समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य अक्सर किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना या विज्ञापन राजस्व के माध्यम से पैसा कमाना होता है। थोड़ा प्रिंट को छोड़कर डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया में नकली समाचारों का प्रचलन बढ़ गया है। भारत में, नकली समाचारों का प्रसार ज्यादातर राजनीतिक और धार्मिक मामलों के संबंध में हुआ है।हालांकि, कोविद -19 महामारी से संबंधित गलत सूचना भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी। देश में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली नकली खबरें एक गंभीर समस्या बन गई हैं।

     हालांकि सरकार द्वारा सोशल मीडिया की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन का उपयोग अक्सर किया जाता है। सरकार जनता को नकली समाचारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने के लिए अधिक सार्वजनिक-शिक्षा पहल करने की योजना भी बना रही है। फैक्ट-चेकिंग ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के लिए भारत में तथ्य-जांच वेबसाइटों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। लेकिन समाज के इस चौथे स्तम्भ की भी समझना चाहिए कि सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।

     पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये। अगर किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को भी थोड़े समय रेड लाइट की जरूरत है ताकि वो सुकून से आगे बढ़ सके और लोगों को सही रास्ता दिखा सके।

--डॉ. सत्यवान सौरभ
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.11.2022-गुरुवार.