साहित्यशिल्पी- भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] – क्रमांक-3

Started by Atul Kaviraje, November 06, 2022, 10:17:57 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
                                   --------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख]" 

                     भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] – क्रमांक-3--
                    ----------------------------------------------

7. महंगाई - भारत में आज लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है; जैसे- रहने के लिए घर नहीं हैं, पीने के लिए साफ़ पानी नहीं है, खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता पर विश्वास नहीं किया जा सकता, बिजली जो आती कम है जाती ज्यादा है, बढ़ती मंहगाई ने सबको तंग किया हुआ है। मंहगाई इन सारी समस्याओं पर ज्यादा भारी पड़ती है। क्योंकि यदि मंहगाई बढ़ती है तो वह इन सभी पर सीधे असर डालती है। सरकार चाहे इसका कोई भी कारण दे परन्तु आम आदमी इस मंहगाई से त्रस्त है। मंहगाई उनके जीवन को खोखला बना रही है। महंगाई हर जगह अपना मुँह फाड़े खड़ी है। फिर वह कैसी भी क्यों न हों। भारत की स्थिति अब इस उक्ति पर फिट बैठती है - "आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया" । जबकि विदेशों में महंगाई से लोग त्रस्त नहीं हैं। जर्मनी में अगर किसी के पास एक यूरो भी हो तो वह उससे कुछ खरीद कर खा सकता है, उसको भूखा नहीं मरना पड़ेगा। वहाँ पर मेहनत-मजदूरी करके रहा जा सकता है।

8. टी.वी. चैनल - भारत में टी.वी. चैनलों की भरमार है। पहले सिर्फ हिन्दी में ही चैनलों का प्रसारण होता था और चैनल भी दो ही थे। लेकिन धीरे-धीरे चैनलों के साथ-साथ भाषाएँ भी बढ़ती गईं। आज हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी चैनलों का प्रसारण हो रहा है जो एक अच्छी बात है। लेकिन भारतीय चैनल अंग्रेजी को अब भी अपनाकर चल रहे हैं। विदेशों में उनकी स्थानीय भाषा में ही चैनलों का प्रसारण होता है। वहाँ मुश्किल से एक या दो चैनल ही अंग्रेजी में प्रसारित होते हैं। वहाँ अपनी स्थानीय भाषा को महत्व दिया जाता है। इसी तरह भारतीय परिवेश में भी स्थानीय भाषा का वर्चस्व होना चाहिए।

9. व्यवस्था-प्रणाली - भारत में कुछ भी व्यवस्थित रूप से नहीं है। चाहे वो बस की लाईन हो, दुकान में खरीददारी की लाईन हो, या कहीं कालेज में प्रवेश लेने की लाईन हो - हर जगह धक्का-मुक्की लगी रहती है। सड़क पर ना वाहन चलाने का व्यवस्थित तरीका है और ना ही पैदल चलने वालों को सड़क पर चलने का तरीका आता है। सड़कों पर ध्वनि प्रदूषण की मारा-मारी है। लोग एक-दूसरे से टकरा कर चलने में अपनी शान समझते हैं। लड़कियों को छेड़ने के तो मामले आम हो गए हैं। भारत में लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। भ्रष्टाचार हर जगह अपने पैर पसारे हुए हैं।

     विदेशों में हर जगह सुव्यवस्था समाई हुई है। वहाँ कोई भी किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। हर काम सुचारू रूप से समय पर होता है। अंग्रेज समय के बहुत पाबंद होते हैं। हर काम व्यवस्थित ढंग से होने पर विदेश और विदेश के लोग तरक्की करते जा रहे हैं।

10. राजनीति - भारतीय राजनीति अकंठ भ्रष्टाचार में डूब चुकी है, देश आर्थिक गुलामी की ओर अग्रसर है, ऐसे में भ्रष्टाचार और कुशासन से लोहा लेने के बजाय समझौतावादी दृष्टिकोण युवाओं का सिद्धांत बन गया है। उनके भोग विलास पूर्ण जीवन में मूल्यों और संघर्षो के लिए कहीं कोई स्थान नहीं है।

11. प्रचार-प्रसार माध्यम - आज भारत में हर प्रचार माध्यम के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता के स्थान पर पश्चिमी मानदंडों के अनुसार प्रतिद्धंद्धी को मिटाने की होड़ लगी हुई है। सनसनीखेज पत्रकारिता के माध्यम से आज पत्र- पत्रिकाएं, ऐसी समाजिक विसंगतियो की घटनाओं की खबरों से भरी होती हैं जिसको पढ़कर युवाओं की उत्सुकता उसके बारे में और जानने की बढ़ जाती है। युवा गलत तरह से प्रसारित हो रहे विज्ञापनों से इतने प्रभावित हो रहे है कि उनका अनुकरण करने में जरा भी संकोच नहीं कर रहें है।

     हम भले ही गाँधी की के आदर्शों को तिलांजलि दे रहे हैं पर अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों में करीब पचास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों ने गाँधीवाद पर कोर्स आरम्भ किये हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट वर्जीनिया, यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई, जॉर्ज मेरून यूनिवर्सिटी के अलावा और भी कई विश्वविद्यालयों ने अपने यहाँ गाँधीवाद विशेषकर गाँधी जी की अहिंसा और पड़ोसियों विरोधाभास ही लगता है कि हम भारतीय आत्मगौरव और राष्ट्रीय स्वाभिमान की अनदेखी करते हुए अपनी संस्कृति और उसकी समृद्ध विरासत को नक्कारने का प्रयास कर रहे हैं।

(क्रमशः)--

---------------------
--डॉ. काजल बाजपेयी
संगणकीय भाषावैज्ञानिक
सी-डैक, पुणे
---------------------

                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                   -----------------------------------------   

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.11.2022-रविवार.