Life with Pen and Papers-उस पार --1

Started by Atul Kaviraje, November 07, 2022, 10:37:13 PM

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Atul Kaviraje

                            "Life with Pen and Papers"
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मित्रो,

     आज पढते है, भावना ललवाणी, इनके "Life with Pen and Papers" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "उस पार --1"

                                     उस पार --1
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     वो झील के किनारे बैठी थी. उसके पैर एडियों  तक पानी में डूबे हुए  थे और  उसके लम्बे रेशमी  बाल  उसकी पीठ पर बिखरे थे और ज़मीन को छू रहे थे. उसने एक लम्बा सा  फ्रौक पहन रखा था जिस पर नीले, सफ़ेद और पीले रंग ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चित्रकार ने यूँ ही ब्रश चलाया हो.. उसके चेहरे पर एक  मुस्कराहट थी और वो अपने ही जाने कौनसे  ख्यालों में खोई हुई थी.  उसकी आँखें अपने आस पास के वातावरण की हर चीज़ को एक आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी के साथ देख रही थी, जैसे उस खूबसूरत, शांत और अनछुए कुदरत के नजारों को अपनी आँखों में क़ैद करती जा रही हो...उस वक़्त उसे सिवाय उन नजारों के और किसी चीज़ का शायद ही कुछ ध्यान रहा होगा..अचानक उसे अपने हथेली के पास  कुछ गुदगुदी सी महसूस हुई, उसने देखा एक मखमल सा सफ़ेद खरगोश उसके हाथ के पास अपनी छोटी सी नाक से ज़मीन रगड़ रहा था..उसे हंसी आई, जैसे कोई छोटा बच्चा हंसा हो ...

     उसने एकदम से बढ़कर खरगोश को पकड़ने की कोशिश की..पर ये क्या, वो तो एक ही क्षण में  जाने कितनी दूर तक दौड़ गया..वो भी उसके पीछे भागी ..और फिर एक झाडी से दूसरी झाडी के पीछे, एक पेड़ से दूसरे पेड़ की तरफ, एक कोने से दूसरे तक..वो खरगोश के पीछे दौड़ती रही कि शायद पकड़ में आ जाए..उसकी साँसे तेज़ हो रही थीं पर उसकी हंसी पूरे माहौल में गूँज रही थी ..अचानक उसने कुछ महसूस  किया, वो रुक गई, पीछे मुड़ी, उस दिशा में देखने के लिए, जिसने अचानक उसके खेल में विघ्न डाल दिया था..

     वहाँ एक लड़का खड़ा था, उसे अजीब सी निगाहों से देखता हुआ, जैसे किसी अनिश्चय में डूबा हुआ...उसने भी लड़के को देखा..सर से पैर तक ..उसकी निगाहों में एक कठोरता थी ..एक उपेक्षा, लापरवाही और थोडा सा गुस्सा भी ..जाने कितने सवाल थे उन आँखों में..शायद पूछना चाह रही थीं, " कौन हो तुम और किसकी इज़ाज़त से यहाँ तक चले आये हो?" पर फिर वो बिना कुछ कहे चुपचाप मुड गई , जिस तरफ से आई थी , उसी तरफ वापिस चली गई.. लड़का अभी भी उसे घूर  रहा था और फिर  कुछ सोच कर वो उसके पीछे चलने लगा..

"कौन हो तुम?" उस लड़के ने पूछा.

     लड़की ने एक बार फिर  उसकी तरफ तीखी नज़रों से देखा जैसे कह रही हो, " तुम कौन होते हो पूछने वाले या क्यों पूछ रहे हो?"

     एक बार फिर से उसकी आँखें उस खरगोश को तलाशने लगीं जो अब पता नहीं कहाँ खो गया था और  कहीं भी  नहीं दिख रहा था..वो चुपचाप फिर से झील की  तरफ चली गई और वहीँ उसी जगह जाकर बैठ गई. उसका प्रतिबिम्ब पानी में झिलमिला रहा था और वो उसे देखे जा रही थी या शायद उसमे कुछ तलाश रही थी ..कहा नहीं जा सकता.

     लड़का भी अब तक उसके पास पहुँच चुका था. उसने पानी में  लड़की के प्रतिबिम्ब को देखते हुए  धीरे से पूछा, "क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?"  वो इतना नज़दीक खडा था कि अब उसका प्रतिबिम्ब भी पानी में  दिखाई देने लगा था, बिल्कुल लड़की के प्रतिबिम्ब के पास..उन दोनों की परछाइयां  झील की शांत और पारदर्शी  सतह  पर  एक-दूसरे में घुल मिलकर एक अलग ही तस्वीर बना रही थीं.

"कौन हो तुम?"  सवाल दोहराया गया लेकिन लड़की ने एक बार फिर  इसे उपेक्षित कर दिया और पलट कर प्रति प्रश्न किया..

"तुम कहाँ से  आये हो?"
वो मुस्कुराया, " उस पार से.."

" उस पार..!! कहाँ  से.." निश्चित रूप से इस जवाब ने लड़की की जिज्ञासा बढ़ा दी.
"पहाड़ के उस पार से.." उसने थोड़ी दूर एक पहाड़ की तरफ अपनी ऊँगली से इशारा करके बताया. वो अब तक उसकी इस  दिलचस्पी को  समझ गया था. लड़की ने उस दिशा में देखा और दूसरा  सवाल किया, " क्या तुम यहाँ अक्सर आते हो?"

"नहीं ज्यादा नहीं, सिर्फ कभी कभार, लेकिन कभी किसी को यहाँ नहीं देखा इसलिए तुमको देख कर कुछ हैरानी सी हुई."

"वैसे तुम कहाँ से आई हो?" अब पूछने की बारी लड़के की थी.

"उस पार से".
वही जवाब उसे भी मिला और फिर उसने भी वही सवाल लड़की की तरफ दोहराया...

"नदी के उस पार से,"  अबकी बार लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
"लेकिन मैंने तो यहाँ कभी कोई  नदी नहीं देखी."

"क्योंकि तुमने कभी देखने की कोशिश नहीं की".
"अच्छा.." अब हंसने की बारी लड़के की थी.

थोड़ी देर बाद लड़की के पैर पानी में छप छप कर रहे थे..

"तुम्हारा नाम क्या है?" लड़के ने पूछा.

"क्या उस से कुछ फर्क पड़ता है?" वो एक बार फिर हंसी.  फिर उसने  पूछा,  "अच्छा, पहाड़ के उस पार कैसी  दुनिया है?  मैं कभी वहाँ नहीं गई."

(क्रमशः)--

--भावना ललवाणी 
(Thursday, 29 December 2011)
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        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-lifewithpenandpapers.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.11.2022-सोमवार.