साहित्यशिल्पी-भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत] – क्रमांक--1

Started by Atul Kaviraje, November 08, 2022, 09:39:15 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत]" 

         भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत] – क्रमांक--1--
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     गोधूली बीत गयी थी और अंधेरा शनै:-शनै: परिवेश को अपने आगोश में लिये, अपने साम्राज्य की घोषणा कर रहा था। किले के भीतर वह भग्नावशेष; जो कभी महल रहा होगा; और भी डरावना लगने लगा। भीतर से आती अजीब अजीब सी आवाजें दिल को बैठनें पर मजबूर करती लेकिन हौसला मजबूत था। रौशनी के नाम पर हमारे हाँथों में केवल एक टॉर्च थी। आसमान पर पूरा चाँद खूबसूरत तो लगना ही चाहिये था लेकिन आज जैसे भीतर के भय को उकेरने की कोशिश में था और भयावह लग रहा था।

     भानगढ के भूतिया-किले में हम इस वक्त भग्न महल की प्राचीर पर थे। महल के अग्र भाग पर संभवत: जहाँ से कभी राजे महाराजे अपनी नगरी को उँचाई से निहारा करते रहे होंगे वहाँ एक कुत्ता हमारी उपस्थिति को नजरंदाज किये इस तरह खडा था मानों भवन का अधिपति हो। काला-भूरा मिश्रित वह कुत्ता विशिष्ठ तरह से चमकती अपनी आँखों के कारण डरावना प्रतीत होता था।

     राजस्थान के अलवर शहर से लगभग 86 कि. मी. की दूरी पर स्थित भानगढ, सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से लग कर अवस्थित है। पर्यटन की दृष्टि से सरिस्का आने वालों के लिये भानगढ को भी सम्मिलित कर लेना अपनी यात्रा को यादगार बना लेना है। अक्टूबर का पहला दिन था, राष्ट्रीय उद्यान आज ही तीन माह के बाद जन-सामान्य के लिये खोला गया था। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान कभी बाघों के लिये ही जाना जाता था किंतु अब केवल एक विस्थापित बाघ और दो बाघिनियों के साथ अपनी पुरानी साख की ओर लौटने की कोशिश में लगा है। पर्यटकों के लिये बाघ देख पाना उनकी किस्मत पर निर्भर करता है लेकिन घने जंगल के भीतर प्रविष्ठ होते ही झुंड के झुंड मोर, सांभर, नीलगाय, हिरण, जंगली सुअर यहाँ तक कि नेवले, मगरमच्छ और साँप भी हमने देखे। वन्यजीवों को प्रकृति के बीच स्वच्छंद और सानंद देखने का आनंद ही कुछ और है।

     घने जंगलों से हो कर ही पांडुपोल के लिये रास्ता जाता है। इस स्थल की कहानी दिलचस्प है। हनुमान जी नें इसी स्थल पर भीम का अपने बल पर अहं तोडा था, एसी मान्यता है। पाण्डुपोल में हनूमान जी का सुन्दर मंदिर है जहाँ उनकी लेटी हुई मनोहर मूर्ति स्थापित है।

     पाण्डुपोल से लगभग 50 कि.मी की दूरी पर है - भानगढ। हमारी अभिरुचि इस स्थल पर पहुँचने की अधिक थी। इसका पहला कारण था इस स्थल के बारे में फैली हुई अनेक कहानियाँ और अफवाहें। जितने मुँह उतनी बाते प्रसारित हैं। भानगढ, भारत के उन स्थलों में से एक है जिन्हे भूतिया कहा जाता है।

(क्रमशः)--

--राजीव रंजन प्रसाद
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.11.2022-मंगळवार.