साहित्यशिल्पी-भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत] – क्रमांक-4

Started by Atul Kaviraje, November 11, 2022, 09:10:51 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत]"     

       भानगढ के भूतिया खंडहर - हमारे अनुभव [यात्रा वृतांत] – क्रमांक--4--
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     सामने ही महल के कमरे नजर आने लगे थे टॉर्च से रोशनी डालने पर भी अंधकार ही दिखा। हजारो दीपक भी एसे अंधेरे निगल नहीं पाते। सड्क पर आगे बढते हुए इस बहुमंजिली इमारत से परिचित होने का प्रयास जारी रहा। महल की मध्य मंजिल बहुत हद तक सुरक्षित है। साथ ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग नें भी इस मंजिल का जीर्णोद्धार का कार्य पूरा कर लिया है।

     बड़ी बड़ी खिड़कियों से भीतर आती रोशनी नें उस कक्ष में घुसने का मुझे साहस दिया ही था कि कमरे के भीतर से आती अजीब अजीब सी आवाजों नें धड़कन बढा दी। कमरे के भीतर घुसते ही एक चमगादड़ बिलकुल मेरे सर के उपर से शोर मचाता हुआ उड़ा। मैं संभलने की प्रकृया में लड़खड़ा गया। संभल कर आगे बढ उस स्थल पर पहुँचा जहाँ तांत्रिक अनुष्ठान अब भी किये जाते थे। अजीब सी गंध उस माहौल में थी। कोई भी घबरा सकता था, कमजोर दिल बैठ सकते थे। दीवाल को नारंगी रंग के सिंदूर से यत्र तत्र रंगा गया था, फर्श पर जौ फैली हुई थी।...। माहौल का जायजा ले कर मैं दूसरे कमरों की ओर बढ गया। एकाएक लगा जैसे पायल की आवाज....मन खामोश हो गया। पायल की आवाज और इस वीरान महल में, जिस पर वैसे भी भुतहा होने का चस्पा लगा है? मैं उस दिशा की ओर सहमता हुआ बढा जहाँ से आवाज़ आ रही आवाज के निकट पहुचने तक मेरी शंका का समाधान हो गया था। उस अंधेरे कमरे के बिलकुल कोने में छन कर आ रही रोशनी से बहुत सी छोटी छोटी काली चिडिया बेचैनी से उड़्ती और चहचहाती दिखाई पड़ीं। वे एक साथ उस लय में चहचहा रही थी कि पायल की आवाज का भ्रम स्वाभाविक था। मैने राहत की साँस ली और चेहरे पर मुस्कुराहट उभर आयी। तंत्र-मंत्र, सिद्ध-सिद्धियों के इस माहौल नें इस भवन से जुड़ी दूसरी किंवदंती की ओर मेरा ध्यान खींचा। गाईड नें रास्ते में बहुत गंभीर हो कर यह कहानी सुनायी थी।

     भानगढ की राजकुमारी रत्नावती का सौन्दर्य अद्वतीय था। अट्ठारह वर्ष की होते ही राजकुमारी से विवाह के लिये बडे साम्राज्य के राजकुमारो और राजाओं के रिश्ते आने लगे थे। नगर में एक तांत्रिक "सिंघिया" भी रहता था जिसे जादू और काली विद्या में सिद्धियाँ प्राप्त थीं। तांत्रिक राजकुमारी पर मोहित हो गया और उसे पाने के यत्न में जुट गया। तांत्रिक सिंघिया जानता था कि वह सामान्य स्थिति मे राजकुमरी को पाना तो दूर उससे बात भी नहीं कर सकता था। वह निरंतर मौके की तलाश में था। एक दिन उसनें देखा कि राजकुमारी की सेविका नगर के बाजार में सुगंधित तेल खरीद रही है। यह तेल राजकुमारी के वदन में सौन्दर्य वर्धन के लिये लगाया जाता था। यह देखते ही उसे राजकुमारी से मिलने और अपनी दमित यौनेच्छा की पूर्ति की युक्ति मिल गयी। अपनी तंत्र क्रिया तथा काले जादू का प्रयोग तांत्रिक नें उस सुगंधित तेल पर किया; तेल के छू लेने मात्र से राजकुमारी सम्मोहित हो उठती और स्वयं को उस तांत्रिक की वासना के सम्मुख समर्पित कर देती।.....। यह योजना धरी रह गयी, वस्तुत: राजकुमारी नें तांत्रिक को यह सब करते हुए देख लिया था और वह उसकी नीयत से भी वाकिफ थी। राजकुमारी नें सेविका से तेल से भरी सुराही को छीन कर गुस्से से जमीन में पटक दिया। सुराही एक बडे से पत्थर पर गिरी और फूट गयी। तेल उस पत्थर पर बिखर गया और काले जादू के प्रभाव से वह पत्थर उस क्रूर तांत्रिक की ओर बढ चला। कुचले जाने से तांत्रिक की तो मौत हो गयी लेकिन मरते मरते ही वह अपनी तंत्र क्रियाओं द्वारा नगर को अभिषप्त कर गया कि वहाँ रहने वालों की न केवल मौत हो जायेगी बल्कि वे नियति अनुसार पुनर्जन्म भी नहीं ले सकेंगे। अगले ही वर्ष अजबगढ का हमला हो गया और फिर कोई भी नहीं बचा। एक एक नागरिक मारा गया यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी...। कहते हैं यहाँ वही अभिशप्त रूहें भटकती रहती हैं।

(क्रमशः)--

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.11.2022-शुक्रवार.